नादब्रह्म के उपासक !

भारतीय संस्कृति के जीवंत शलाका पुरुष एवं हिन्दुस्तानी संगीत के अमर गायक पंडित जसराज भौतिक रूप में अब हमारे बीच नहीं रहे। 28 जनवरी 1930 को हरियाणा में जन्मे इस महान संगीतज्ञ ने 17 अगस्त 2020 को अमेरिका के न्यूजर्सी में अंतिम सांस ली। दुनियादारी के हिसाब से उनकी मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रभु से औपचारिक प्रार्थना करने की इस लिए आवश्यकता नहीं क्योंकि संगीत साधना के माध्यम से पंडित जी ने पहले ही प्रभुधाम का मार्ग खोल रखा था।

सृष्टि की रचना ब्रह्मनाद से हुई। अंतर्मन से प्रभु से तार जोड़ने में वह महापुरुष ही सफल रहता है जिस पर ईश्वर की कृपा होती है। पंडित जी की गायकी में ऐसा विलक्षण जादू था जो श्रोता को अभिभूत कर सृष्टि के पालनहार से हृदय के तार जोड़ देता था।

हम संगीत के विषय में शून्य है, सा रे गा मा का भी ज्ञान नहीं अतः उनकी संगीत विज्ञता पर कुछ लिख पाने की हमारी सामर्थ्य नहीं। जो सज्जन सनातन संस्कृति में विश्वास रखते हैं उनके लिए पंडित जसराज ने संगीत का अनमोल खजाना छोड़ा है। उनकी स्मृति में गुरु नानक देव जी द्वारा रचित भजन, जिसे पंडित जी ने राग भैरवी में गाया है, पेशे खिदमत है:

सुमिरन कर ले मेरे मना,
तेरी बीती उम्र हरी नाम बिना ।

पंछी पंख बिना, हस्ती दन्त बिना, नारी पुरुष बिना,
जैसे पुत्र पिता बिना हीना, तैसे पुरुष हरी नाम बिना ।

कूप नीर बिना, धेनु खीर बिना, धरती मेह बिना,
जैसे तरुवर फल बिना हीना, तैसे पुरुष हरी नाम बिना ।

देह नैन बिना, रैन चन्द्र बिना, मंदिर दीप बिना,
जैसे पंडित वेद विहीना, तैसे पुरुष हरी नाम बिना ।

काम क्रोध मद लोभ निवारो, छोड़ विरोध तू संत जना ।
कहे नानक तू सुन भगवंता, इस जग में नहीं कोई अपना ॥

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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