भारत पर विदेशी हमलों की परिणति दो हजार साल की गुलामी के रूप में तो हुई ही थी, आक्रांताओं ने भारती संस्कृति को नेस्तनाबूद करने के उद्देश्य से हमारी संस्कृति के प्रतीकों: मंदिरों, उपासना गृहों तथा शिक्षा संस्थानों को तहस-नहस करने में कोई कसर उठा नहीं रखी।
पराधीनता और सांस्कृतिक धरोहरों के नष्ट किए जाने का खामियाजा भारत अभी तक भुगत रहा है और जन-जागरण न होने से आगे भी भुगतेगा। इस सबका दुष्परिणाम वहीं हुआ जो विदेशी आक्रांताओं ने चाहा था। भारतवासी अपने उन महाप्रतापी शूरवीर राष्ट्रभक्तों को भूल गए जिनका डंका सारी दुनिया में बजता था और भारत सोने की चिड़िया कहलाता था।
सबसे खेदजनक पहलू यह है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी इन महान भारतीयों की स्मृति को अक्षुण्य रखने के लिए कोई स्मारक, कोई बड़ा संस्थान या अन्य बड़ा काम नहीं किया गया। नयी पीढ़ी को उनके संबंध में दो शब्द भी नहीं पढ़ाए गए।
आज ये पीड़ादायक शब्द इस लिए लिखने की बाध्यता है कि हम भारत के महाप्रतापी सम्राट मिहिर भोज को उनकी जयंती पर श्रद्धा के दो पुष्प भी अर्पित कर न सके। सम्राट मिहिर भोज अतिबलवान, शुरवीर, न्यायकारी, कुशल प्रशासक तथा इन सबसे उपर परम राष्ट्रभक्त थे। अरब के विदेशी हमलावर उनके बल और पौरुष से थर्राते थे। राजा मिहिर भोज सम्राट रामभद्र के यशस्वी पुत्र थे। अनुमान है इन्होंने 836 ई. से 885 ईस्वी तक भारत पर शासन किया। ये भगवान विष्णु तथा शिव के उपासक थे। इनके राज्य का विस्तार चारों दिशाओं में था। कन्नौज उनकी राजधानी थी। सिंध पर अरब लुटेरों के हमलों के मद्देनजर सम्राट मिहिर भोज ने बलशाली सेना गठित की जिसमें सभी जातियों के वीर शामिल थे। सम्राट मिहिर भोज ने देश में पहली बार सैनिकों को वेतन देने की प्रथा लागू की। इन्होंने सिंध पर कब्जा करने वाले इमरान बिन मूसा को युद्ध में पराजित किया। इनके शौर्य व पराक्रम से आतंकित अरब आतताई कई शताब्दियों तक भारत पर हमला करने का दुस्साहस नहीं कर सके। अरब के इतिहासकारों व यात्री अली मसूदी ने इन्हें इस्लाम का कट्टर दुश्मन बताया था। कश्मीरी कवि कल्हण ने अपनी पुस्तक ‘राजतरंगणी’ में सम्राट मिहिर भोज के पराक्रम व देशप्रेम का उल्लेख किया। प्रमुख साहित्यकार व उत्तरप्रदेश के पूर्व राज्यपाल के.एम.मुंशी तथा इतिहासकार डॉ. आर.सी.मजूमदार ने सम्राट मिहिर भोज को प्रबल राष्ट्रवादी एवं कुशल प्रशासक तथा प्रजा वत्सल बताया है।
सम्राट मिहिर भोज हमारे महान पूर्वज हैं उनकी वीरता एवं राष्ट्रप्रेम को हम हृदय में पीढ़ी दर पीढ़ी संजोयें रखें। भारत सरकार के प्रकाशन विभाग से आग्रह है कि वह सम्राट मिहिर भोज के गौरवशाली इतिहास संबंधी पुस्तक विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित कर, पूरे भारत में वितरित कराये। सम्राट मिहिर भोज को इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में स्थान मिलना भी बेहद जरूरी है। हमारा आग्रह है कि मानव संसाधन मंत्रालय इस और यथाशीघ्र कदम उठाए।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’