कोरोनाकाल में एंटीबायोटिक्स के बेतहाशा इस्तेमाल से बना सुपरबग..

कोरोनाकाल में एंटीबायोटिक्स के बेतहाशा इस्तेमाल के कारण भारत में सुपरबग पैदा हुए। नतीजा, बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन तेजी से फैला। सुपरबग ऐसे सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया) होते हैं जिन पर एंटीबायोटिक्स का अधिक इस्तेमाल होने के कारण ये खास तरह की प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं और इन पर दवाओं का असर होना बंद हो जाता है। यह दावा जर्नल इंफेक्शन एंड ड्रग रेसिस्टेंस में पब्लिश रिसर्च रिपोर्ट में किया गया है।

कोरोना की पहली लहर में दिखे थे ऐसे मामले


शोधकर्ताओं का कहना है, कोरोना की पहली लहर में अस्पतालों में भर्ती मरीजों में कम संख्या में बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन के मामले दिखे थे। इसमें सामने आया कि यह संक्रमण दवा को बेअसर साबित करने वाले किटाणु फैला रहे हैं। संक्रमण को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने भारत के 10 अस्पतालों के 17,563 मरीजों पर अध्ययन किया।

रिसर्च के मुताबिक, कई अस्पतालों में बैक्टीरिया और फंगस से संक्रमित होने वाले कोविड के मरीजों की संख्या 28 फीसदी थी। यह अतिरिक्त संक्रमण मरीजों में इसलिए हुआ क्योंकि इनमें मौजूद सूक्ष्य जीवों पर दवाएं बेअसर साबित हो रही थीं।

बग के कारण 60% कोरोना पीड़ितों की मौत


रिसर्च रिपोर्ट कहती है, कोविड के मरीजों में एंटीबायोटिक्स के कारण जो अतिरिक्त संक्रमण हुआ, उससे भारत में कोविड-19 के 60 फीसदी मरीजों की मौत हुई। कोरोना के जो मरीज सुपरबग की चपेट में नहीं आए उनमें से मात्र 11 फीसदी की मौत हुई। ये ज्यादातर डायबिटीज और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों से पीड़ित थे।

देश में मृत्युदर बढ़ने के कारण

  • एंटीबायोटिक्स का अधिक इस्तेमाल: आस्ट्रेलियन यूनिवर्सिटी के महामारी विशेषज्ञ डॉ. संजय सेनानायक का कहना है कि भारत में संक्रमण के मामले बढ़ने के साथ डॉक्टर्स ज्यादा एंटीबायोटिक्स लिखने लगे थे।
  • दवाओं पर डॉक्टर्स की एक राय नहीं: देश में दवाओं के इस्तेमाल पर डॉक्टर्स में एक राय नहीं थी। इनमें आइवरमेक्टिन, एजिथ्रोमाइसिन, बारिसिनिटिब, डॉक्सीसाइक्लिन, इंटरफेरान अल्फा-2बी जैसी दवाओं शामिल थीं।
  • प्रतिबंधित दवाओं का प्रयोग हुआ: आईसीएमआर की माइक्रोबायोलॉजिस्ट कामिनी वालिया का कहना है, कोविड के इलाज में ऐसी एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल हुआ जिसे WHO ने सामान्य इलाज में भी प्रतिबंधित कर रखा है।

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