टोक्यो ओलिंपिक में देश के नाम सिल्वर मेडल करने वाले सोनीपत जिले के गांव नाहरी में रवि दहिया के स्वागत की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। हालांकि परिवार ही नहीं, बल्कि हर भारतीय को रवि से गोल्ड मेडल की आस थी। दो दिन पहले अपने छोटे भाई पंकज और चचेरे भाई राजू (दोनों पहलवान हैं) से बात करते हुए रवि ने कहा था, ‘ऐसा खेल दिखाऊंगा कि दुनिया याद रखेगी’। इसके बाद बुधवार सुबह क्वालीफाइंग और क्वार्टर फाइनल को बिलकुल एकतरफा किया। सेमीफाइनल में भी आखिरी मिनट में नाउम्मीदगी को उम्मीद में बदल दिया। गुरुवार को फाइनल में उसके दांव-पेच देखने लिए सब लालायित थे। अब दुनिया के दूसरे नंबर का अवार्ड को लेकर यह लाल गांव लौटेगा तो सबसे पहले एक मां के सीने को असीम शांति मिलेगी, जो पिछले एक साल से अपने टुकड़े से दूर है। हर कोई अपने अंदाज में खिलाड़ी का स्वागत करेगा, वहीं मां उर्मिला उसे जी भरकर चूरमा (देसी घी और करारी रोटियों से बनने वाली एक पारंपरिक हरियाणवी व्यंजन) खिलाएंगी।
आज गांव की चौपाल में आसपास के लोग और दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में साथी खिलाड़ी रवि दहिया की फाइट देखने के लिए टेलीविजन स्क्रीन से चिपके रहे। रवि दहिया फाइनल मुकाबले में रूसी खिलाड़ी से हार गए. लेकिन सिल्वर जीतने के बाद देशभर के साथ परिवार के लोग भी खुश हैं। अब हर किसी को उनकी वापसी का इंतजार कर रहे हैं।
रवि दहिया की मां उर्मिला ने कहा कि वह अपने बेटे की वापसी पर शानदार स्वागत करेंगे। उन्होंने कहा, ‘मेरे बेटे का सबसे पसंदीदा चूरमा है, जो उसके आने पर उसे खिलाऊंगी’। उन्होंने कहा कि उनके बेटे को खीर और हलवा भी खास पसंद है। गोल्ड न लाने से मायूसी के सवाल पर रवि की मां ने कहा कि वह अपने बेटे से कहेंगी-लगा रहे, अगली बार जरूर गोल्ड लेकर आना। उन्होंने कहा कि घर के सदस्यों से भी उन्होंने कहा कि नाराजगी की बात नहीं है, उनका बेटा अगली बार गोल्ड लाएगा।
सालभर से घर से दूर हैं रवि दहिया
उर्मिला दहिया ने बताया कि उनका बेटे करीब एक साल से घर से दूर है। उन्होने कहा कि जब रवि 10 साल का था तभी घर से कुश्ती की अपनी तैयारियों में दिल्ली निकल गया था और वहीं पर रहता था। उन्होंने आगे कहा कि उनका बेटा काफी सीधा है और उन्होंने बेटे को इजाजत दे रखी थी कि जो मन में आए वह करो। रवि दहिया के स्वभाव के बारे में बोलते हुए उनकी मां ने कहा कि वह लोगों से बहुत कम ही बातें किया करता था।