भारत के अमूल्य दुर्लभ रत्न थे प्रणव दा!

भारतरत्न प्रणव मुखर्जी के निधन के समाचार से आज पूरा भारत शोकाकुल है। सचमुच में वे भारत के अमूल्य दुर्लभ रत्न थे। जिस पद पर रहे उनका एकमात्र लक्ष्य लोकसेवा, देशसेवा करना था। अपने गुरूतर उत्तरदायित्वों को वहन करते हुए वे तटस्थ, निर्विकार, समभावी एवं उदार रहे। सत्यान्वेषण के प्रति उनका आकर्षण इतना तीव्र था कि न केवल कांग्रेस के एकाधिकारियों के विरोध वरन् अपनी पुत्री के प्रतिरोध के बावजूद वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय नागपुर पहुंचे। वे सच्चे समन्वयवादी, धर्मनिरपेक्ष एवं मानवतावादी महामानव थे। उनके जाने के बाद उनके सद्गुणों का मूल्यांकन कर हमारी पीढ़ियां स्वयं को गौरवान्वित महसूस करेंगी।

माता-पिता ने उनका प्रणव नाम ठीक ही रखा था। भारतीय मनीषा में प्रणव को ॐकार अर्थात ईश्वर माना गया है। प्रणव सम्पूर्ण जगत का आधार बिन्दु है। प्रणव दा ने भारतीय दर्शन की इस भावना को हृदयंगम रखा। ऐसी उच्च महान आत्मा के महाप्रयाण पर हम उन्हें इस मंत्र के साथ नमन करते हैं:
ॐकारं बिन्दुसंयुक्तं
नित्यं ध्यायन्ति योगिन :।
कामदं मोक्षदं चैव
ॐकाराय नमो नम :।

ॐ सृष्टि की प्रथम ध्वनि है। इसे प्रणव भी कहते हैं। चन्द्रबिन्दु सहित ॐ हमें बताता है कि हम ईश्वर के ही अंश हैं। ईश्वर सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला एवं मोक्ष प्रदाता है। योगीजन इस ॐकार को अपने हृदय में धारण करते हैं। मैं भी उसी प्रकार ईश्वर के समक्ष शीष झुकाता हूं।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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