यह कैसा ‘धमाकेदार’ इंटरव्यू!

एक टी.वी चैनल पर 23 जुलाई 2020 के ‘धमाकेदार’ इंटरव्यू के बाद 27 अगस्त 2020 को एक और ‘धमाकेदार’ इंटरव्यू परोसा गया। 23 जुलाई का इंटरव्यू आतंकी बदमाश विकास दुबे की पत्नी ऋचा का था। इस इंटरव्यू का मकसद टी.वी के संवाददाता द्वारा पूछे गए प्रश्नों से स्पष्ट हो रहा था। पेड न्यूज की भांति इलेक्ट्रॉनिक चैनल किस प्रकार पेड इंटरव्यू क्रिएट करते हैं, पत्रकारिता की यह महारथ उस इंटरव्यू में साफ तौर से दिखती थी। ऋचा दुबे से कहलवाया गया कि विकास दुबे कोई अपार धन दौलत या संपत्ति नहीं छोड़ गया। वह पाई-पाई से मोहताज है। पुलिस कार्यवाही से उसके बच्चों का करियर चौपट हो गया है। अगर मुझे पता होता तो मैं खुद विकास दुबे के गोली मार कर विधवा हो जाती। टी.वी पत्रकार ऋचा दुबे से ऐसे प्रश्न कर रहा था जिनसे उसकी (ऋचा की) बेचारगी सिद्ध हो और आभास हो कि विकास दुबे का एनकाउंटर एक ब्राह्मण की शहादत बन जाए। इस ‘धमाकेदार’ इंटरव्यू में ऋचा पीड़ित विधवा के बजाय एक तेजतर्राक नेता के रूप में दिखाई दी।

अब 27 अगस्त को एक और ‘धमाकेदार’ इंटरव्यू दर्शकों पर लादा गया जिसमें सुशांत सिंह राजपूत हत्याकांड में आरोपित रिया को एक संदिग्ध हत्यारी या आरोपित के बजाय बेगुनाह प्रेमिका एवं सती-सावित्री निरीह भारतीय महिला के रूप में प्रस्तुत किया गया। यह तब हुआ जब सीबीआई, ई.डी एवं अन्य एजेंसियां जांच व पूछताछ में लगी हैं। प्रश्नकर्ता पत्रकार एवं रिया के प्रश्नोत्तरों व उनकी भाव भंगिमाओं से स्पष्ट दिखता था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पत्रकारिता की मर्यादा को निहित उद्देश्य की पूर्ति के लिए किस नीचता तक कलंकित किया गया है और वह भी ‘सत्यमेव जयते’ कह कर। यह इंटरव्यू पत्रकारिता को धूल धूसरित करने का निकृष्टतम कुकृत्य था। आश्चर्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ऐसी टुच्ची पत्रकारिता को क्यों प्रक्षय दे रही है? लेखनी एवं वाणी की स्वतंत्रता वहीं तक स्वीकार्य है जहां तक इससे राष्ट्र व समाज का हित होता हो। शोहरत व दौलत कमाने के उद्देश्य से पत्रकारिता जैसे पवित्र पेशे का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए। जब व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका सभी के लिए लक्ष्मण रेखायें है तो लोकतंत्र के कथित चौथे स्तंभ के मरखने सांडों को छूट्टा नहीं छोड़ना चाहिए। निरंकुशता किसी की भी हो, अराजकता को जन्म देती हैं। प्रधानमंत्री मोदी हर मोर्चे पर सफलतापूर्वक दुराग्रही शक्तियों से लोहा ले रहे हैं। वे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में तूफाने-बदतमीजी मचाने वालों की बेजा हरकतों को नियंत्रित करने का भी कुछ इंतजाम करें। सुप्रीम कोर्ट गंभीर विषयों पर स्वतः संज्ञान ले लेती है। यह समस्या कम गंभीर नहीं। सर्वोच्च न्यायालय को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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