विरोध-प्रदर्शन पर पुलिस उत्पीड़न निंदनीय !

लखनऊ का समाचार है कि नीट व जेईई परीक्षा कराने के विरोध में ज्ञापन देने जा रहे समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ पुलिस ने राजभवन के समीप न केवल मारपीट की बल्कि वरिष्ठ नेताओं के साथ अभद्रता भी की। लोकतंत्र में विपक्ष का अधिकार है कि वह सामूहिक रूप से विरोध प्रदर्शन करें, या सरकार की नीतियों के विरूद्ध रोष जताये। यदि प्रदर्शन शांतिपूर्ण है, तोड़फोड़ अथवा हिंसक कार्यवाहियों में संलग्न नहीं है तो पुलिस को अधिकार नहीं है कि वह ज्ञापन देने वालों के साथ शातिर अपराधियों की भांति व्यवहार करे, तथापि कानून तो अपराधियों के साथ भी थर्ड डिग्री सलूक करने की इजाजत नहीं देता। लखनऊ में सपा कार्यकर्ताओं के साथ जो हुआ वह निंदनीय एवं दुर्भाग्यपूर्ण है।

आमतौर पर यह देखा जाता है कि लोकतंत्रीय प्रदर्शनों के प्रति पुलिस की नज़रें टेढ़ी रहती हैं। यह भी सत्य है कि प्रदर्शन के दौरान भीड़ अनियंत्रित हो जाती है और तोड़फोड़, आगजनी व हिंसा पर उतारू हो जाती है। ऐसी अनेक घटनायें स्वतंत्र भारत में हुई हैं। यह भी सत्य है कि पुलिस का यह नकारात्मक चरित्र ब्रिटिश काल से ही बना हुआ है।

हमें स्मरण है कि इंदिरा गांधी के विरूद्ध दिल्ली में हुए प्रदर्शन में पुलिस ने प्रमुख समाजवादी नेता राजनारायण पर लाठी प्रहार करके उनके पांव की हड्डी तोड़ दी थी। इसके बाद वे आजीवन छडी लेकर चलते रहे। अभी कुछ वर्षों पहले शामली में एक सामूहिक दुष्कर्म के विरोध पर शांतिपूर्ण धरने पर बैठे वरिष्ठ नेता बाबू हुकुम सिंह पर तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने खुद लाठी भांजी। इसकी वीडियो व फोटोग्राफ अब भी मौजूद हैं। इसी प्रकार बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती के शासनकाल में सपा प्रदर्शनकारियों पर निर्मम लाठी चार्ज हुआ। यहां तक कि एक सी.ओ ने सपा के एक प्रमुख नेता को सड़क पर गिराकर उनके मुंह पर जूता सहित पैर रख दिया।

इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति आए दिनों होती रहती है जो दर्शाती है कि न केवल पुलिस प्रणाली दूषित है, वरन् राजनीतिक दलों के नेताओं के विचारों में भी कहीं न कहीं खोट है। वे जब विपक्ष में होते हैं तो दृष्टिकोण और होता है, सत्ता में आते ही उनका रवैया बिल्कुल उलट जाता है। पुलिस को दोष देने से पहले हमारे नेताओं को खुद अपना मन टटोलना चाहिए और सभी दलों को सर्वसम्मति से कोई फैसला करना चाहिए जिसमें एकमत से निर्णय हो कि सभी विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण होंगे तथा कोई उत्तेजनात्मक
या भड़काऊ कार्यवाही नहीं की जाएगी। पुलिस को बता दिया जाना चाहिए की यह लोकतंत्रीय भारत है, अब कोई डायरगर्दी चलने वाली नहीं।

हमारा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अनुरोध है कि वे आगे बढ़ कर पहल करें और अपनी पुलिस को निर्देश दें कि शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के साथ बदसलूकी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here