74 वें स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से अपने संबोधन में महर्षि अरविंद को याद किया। उनका स्मरण इस लिए आवश्यक नहीं था कि वे 15 अगस्त (1872) में उत्पन्न हुए थे, वरन् इस लिए कि महर्षि अरविंद बंगाल की क्रांतिधरा पर जन्म लेकर भारत की आज़ादी में एक तेजस्वी एवं जूझारू लड़ाके के रूप में उभरे थे। उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक अनोखी आध्यात्मिक दृष्टि हासिल हुई जिसने उन्हें एक महान योगी एवं क्रांतिदर्शी दार्शनिक बना दिया।
अरविंद घोष कलकत्ता के प्रतिष्ठित परिवार में उत्पन्न हुए थे और कैम्ब्रिज (इंग्लैंड) में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। वे युवावस्था में आई.सी.एस परीक्षा उत्तीर्ण कर चुके थे और जानबूझ कर घुड़सवारी में फेल हुए क्योंकि उन्हें अंग्रेजो की नौकरी पसंद नहीं थी। इनकी इच्छा भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की थी। भारत आकर वे कांग्रेस के बड़े नेताओं के संपर्क में आए और 1902 में अहदाबाद कांग्रेस सम्मेलन में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए। बड़ौदा नरेश की सेवा से त्यागपत्र देकर स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। अलीपुर कांड में गिरफ्तार हुए। कारावास के दौरान उनका आत्मचिंतन का दौर आरंभ हो गया। उन्हें अद्भुत अन्तर्दृष्टि तथा आध्यात्मिक प्रेरणा प्राप्त हुई और अरविंद घोष पांडीचेरि में आकर योग तथा ध्यान में जुट गए। उनके चिंतन से भारत का प्रबुद्ध वर्ग बहुत प्रभावित था। मुजफ्फरनगर का सौभाग्य था कि यहां (चरथावल) के एक स्वाधीनता सेनानी एवं आर्य जगत के अति निष्ठावान, तपस्वी, महानुभाव देव शर्मा (जो बाद में आचार्य अभय देव कहलाये) महर्षि अरविन्द से आत्मिक रूप से जुड़ गए। अरविंद आश्रम की स्थापना की और महर्षि की भांति चिन्तन एवं योग साधना में लीन हो गए। 2 जुलाई 1896 में जन्मे आचार्य जी का स्थूलशरीर 1970 में पंचतत्वों में विलीन हो गया।
आचार्य अभयदेव जी आजीवन अविवाहित रहे और राष्ट्रहित तथा राष्ट्र चिन्तन में तत्पर रहें। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया तथा समाज सुधार के कार्यों में लगे रहे। गुरुकुल कांगड़ी के आचार्य के नाते स्वामी श्रद्धानंद आदि अनेक महान व्यक्तियों के वे संपर्क में रहे। महात्मा गांधी के पक्के अनुयायी थे और 1928 में साबरमती आश्रम रहे थे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होने के बावजूद शहीदे आज़म सरदार भगत सिंह उनसे गुरुकुल कांगड़ी में आकर कई बार मिले। बटुकेश्वर दत्त तथा गणेश शंकर विद्यार्थी से भी उनकी भेंट हुई।
आचार्य अभयदेव जी नियमित रूप से अपनी डायरी लिखते थे। उन्होंने लिखा है कि महर्षि अरविंद ने कहा था कि भारत को स्वराज मिलेगा ही किन्तु आज़ादी से भी बड़ा काम है भारत के लोगों को मानसिक रूप से स्वतंत्र करना। आचार्य जी ने लिखा है कि 1947 से पूर्व महर्षि ने कहा था- भारत न तो हिंसा के जरिये आज़ाद होगा, न अहिंसा के जरिये, वह अंतरराष्ट्रीय दबाव के जरिये आज़ाद होगा। महर्षि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और राष्ट्रवाद पर जोर देते थे। वे भारत को श्रेष्ठतम राष्ट्र बनाना चाहते थे। जो जाति एवं महजबों के बंधनों से मुक्त हो। महर्षि ने कहा था कि शाश्वत सत्य सभी पंथो व दर्शनों से ऊपर है। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपादानो के संबंध में महर्षि तथा कांग्रेस के बड़े नेताओं के विचारों में भिन्नता थी। महर्षि का चिन्तन अध्यात्म परख था जबकि कांग्रेस के नेता स्वतंत्रता प्राप्ति का श्रेय खुद लेने को बेताब थे। समय तहत्यों का बारीकी से निष्पक्ष विश्लेषण करेगा।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’