कांग्रेस नेता सुरजेवाला की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया ख़ारिज

आधार कार्ड-वोटर आईडी लिंक मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख करने को कहा। दरअसल, सुरजेवाला ने केंद्र सरकार के आधार कार्ड से वोटर आईडी को लिंक किए जाने के लिए चुनाव कानून संशोधन अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। 

कांग्रेस नेता ने अपनी याचिका में कहा था कि वोटर आईडी को आधार कार्ड से जोड़ने पर नागरिकों निजता के मौलिक अधिकार का हनन होगा। उन्होंने इसे असंवैधानिक बताया। सुरजेवाला की याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करनी चाहिए। यह विषय हाईकोर्ट सुनने में सक्षम है। इसके बाद सुरजेवाला ने अपनी याचिका वापस ले ली। 


वोटर कार्ड को आधार से लिंक करना असंवैधानिक
कांग्रेस नेता सुरजेवाला ने अपनी याचिका में कहा है कि वोटर कार्ड को आधार कार्ड से लिंक करना नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और यह असंवैधानिक है और संविधान के विपरीत है। कांग्रेस का एक तर्क यह भी है कि आधार नागरिकता का नहीं बल्कि निवासी होने का प्रमाण है, जबकि वोटर आईडी कार्ड नागरिकता का अधिकार देता है। आधार डाटा को इलेक्ट्रॉनिक इलेक्टोरल फोटो पहचान पत्र डाटा के साथ जोड़ने से मतदाताओं का व्यक्तिगत और निजी डाटा एक वैधानिक प्राधिकरण को उपलब्ध होगा और यह मतदाताओं पर एक सीमा लागू करेगा। यानी मतदाताओं को अब अपने संबंधित आधार विवरण प्रस्तुत करके निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (प्रतिवादी संख्या दो) के समक्ष अपनी पहचान स्थापित करनी होगी।

नागरिकों के डाटा की सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं
याचिका में कहा गया है कि वर्तमान में नागरिकों के डाटा की सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं है, इस तथ्य से स्थिति और गंभीर हो जाएगी। याचिका में दावा किया गया है कि चुनाव कानून में संशोधन मतदाता के प्रोफाइलिंग को भी सक्षम कर सकता है क्योंकि आधार से जुड़ी सभी जनसांख्यिकीय जानकारी मतदाता पहचान पत्र से जुड़ी होगी।

मतदाता को मताधिकार से वंचित करने की संभावना बढ़ सकती है
यह सैद्धांतिक रूप से मतदाताओं की पहचान के आधार पर मताधिकार से वंचित करने/धमकाने की संभावना को भी बढ़ा सकता है। याचिका में कहा गया है कि “यह मतदाताओं की निगरानी और मतदाताओं के निजी संवेदनशील डाटा के व्यावसायिक शोषण की संभावना को भी बढ़ा सकता है।”

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