कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा के पति और कारोबारी रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 17 जुलाई को मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी एक अहम चार्जशीट दाखिल की है। यह मामला हरियाणा के गुरुग्राम में हुए बहुचर्चित भूमि सौदे से संबंधित है, जिसमें वाड्रा के अलावा सत्यनंद याजी, केवल सिंह विरक और कई कंपनियों को आरोपी बनाया गया है। इन कंपनियों में स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी, स्काई लाइट रियल्टी और ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज प्रमुख हैं।
मामले की पृष्ठभूमि
यह पूरा विवाद सितंबर 2018 में हरियाणा पुलिस द्वारा गुरुग्राम के खेड़की दौला थाने में दर्ज एक एफआईआर से शुरू हुआ था, जिसमें वाड्रा, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, डीएलएफ लिमिटेड और अन्य पर IPC की कई धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया था। आरोप है कि वाड्रा की कंपनी ने बेहद कम पूंजी में 3.5 एकड़ जमीन खरीदी और फिर नियमों की अनदेखी कर उस पर डेवलपमेंट लाइसेंस हासिल किया।
ED की जांच और आरोप
ईडी ने इस जमीन सौदे को ‘अपराध से अर्जित संपत्ति’ का स्रोत मानते हुए मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत जांच शुरू की थी। जांच में सामने आया कि बिक्री के दस्तावेजों में भुगतान चेक से दिखाया गया, जो वास्तव में कभी भुनाया ही नहीं गया। आरोप यह भी है कि लाइसेंस पाने के लिए सरकारी प्रक्रिया को दरकिनार कर फाइलों में हेरफेर किया गया।
प्रॉपर्टी सौदे और कथित वित्तीय लाभ
रिपोर्ट के मुताबिक, स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी ने लाइसेंस के लिए ऐसी जमीन को भी जोड़ा जो नियमों के मुताबिक मान्य नहीं थी। फिर भी विभाग ने उस पर लाइसेंस जारी किया। बाद में जमीन को डीएलएफ को 58 करोड़ रुपये में बेच दिया गया।
ईडी के अनुसार, वाड्रा को इस सौदे से दो कंपनियों के जरिए कुल 58 करोड़ रुपये की राशि मिली — जिसमें 5 करोड़ रुपये ब्लू ब्रीज ट्रेडिंग और 53 करोड़ रुपये स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी के माध्यम से अर्जित किए गए। इस पैसे का इस्तेमाल उन्होंने प्रॉपर्टी खरीदने, निवेश, कर्ज चुकाने आदि में किया।
जब्त की गई संपत्तियां
जांच के दौरान ईडी ने करीब 38.69 करोड़ रुपये मूल्य की 43 अचल संपत्तियों को अस्थायी रूप से जब्त किया है। इनमें बीकानेर, गुड़गांव, मोहाली, अहमदाबाद, नोएडा और फरीदाबाद जैसी जगहों की रिहायशी और व्यावसायिक संपत्तियां शामिल हैं।
कानूनी प्रावधान और संभावित सजा
चार्जशीट में मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम की धाराएं 3, 4, 23, 24, 44 और 45 का हवाला दिया गया है। इनमें से कुछ धाराएं गैर-जमानती हैं और दोष सिद्ध होने पर 3 से 7 साल की सजा का प्रावधान है। ईडी का कहना है कि वाड्रा और उनकी कंपनियों ने राजनीतिक प्रभाव का दुरुपयोग कर नियमों को दरकिनार किया और अनुचित लाभ अर्जित किया।