विधानसभा चुनाव परिणाम आने के कुछ समय बाद से यह कयास लगाये जा रहे थे कि जयन्त चौधरी को राज्यसभा भेजा जायेगा। कल जब कपिल सिब्बल ने समाजवादी पार्टी की मदद से राज्यसभा जाने के लिये पर्चा भरा तब तक यह चर्चा होती रही कि शेष दो सीटों में से एक पर जावेद अली और दूसरी सीट अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल को मिलेगी। जयन्त चौधरी का पत्ता कटता देख पश्चिमी उत्तरप्रदेश की राजनीति में जबरदस्त प्रतिक्रिया शुरू हो गई। शायद ही कोई टी.वी. चैनल हो जिसने डिंपल यादव की उम्मीदवारी पर हैरत प्रकट न की हो। राजनीतिक गलियारे में यह चर्चायें भी चलने लगीं कि वंशवादी-परिवारवादी यादव परिवार अपनी पुरानी परम्पराओं को नहीं छोड़ेगा। कुछ लोगों ने याद दिलाया कि अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव ने कैसे वी.पी. सिंह की घोषणा के बावजूद खुद मुख्यमंत्री बनने की चाल चली और जयन्त के पिता अजित सिंह को केन्द्र का रास्ता दिखाया था।
हमारा विचार है कि पश्चिमी उत्तरप्रदेश रालोद के कार्यकर्ताओं की तीखी प्रतिक्रियाओं और मीडिया में एक स्वर से जयन्त के स्थान पर डिंपल को राज्यसभा भेजने के अखिलेश यादव के फैसले की प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं से पांसा पल्टा है। अखिलेश को आनन-फानन में अपनी पार्टी की बैठक बुलानी पड़ी जिसमें रामगोपाल यादव जैसे दिग्गज नेताओं ने यही परामर्श दिया कि डिंपल के बजाय जयन्त चौधरी को ही राज्यसभा भेजा जाये जिससे भविष्य में पश्चिम में सपा अपने पैर जमाये रखे। सपाइयों को यह याद रखना होगा कि जयन्त चौधरी किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह के पौत्र और चौ. अजित सिंह के पु़त्र हैं। जिन लोगों ने जयन्त को गठबंधन के कारण वोट नहीं दिये, वे भी चाहते हैं कि जयन्त राजनीति के मैदान से बाहर न हों और चौधरी साहब की विरासत को खोने न दें। यह ठीक ही हुआ कि अखिलेश यादव ने अन्तिम क्षणों में अपनी गलती सुधार ली।
गोविन्द वर्मा
संपादक देहात