सबै भूमि गोपाल की !

भारत में एक ऐसा संत हुआ था जिसकी मान्यता थी कि जिस प्रकार हवा-पानी और रोशनी पर सभी का अधिकार है, ये ईश्वर के हैं इसी तरह भूमि भी ईश्वर की है। वे कहते थे- ‘सबै भूमि गोपाल की’ यानि यह जमीन भी ईश्वर की है! उनका कहना था कि मुफलिसों और बेसहारा लोगों को जमीन मिलनी चाहिये ताकि वे इससे अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें। ये महान् संत थे विनायक नरहरि भावे, जो आचार्य विनोबा भावे के नाम से प्रसिद्ध हुए। इनका जन्म 11 सितंबर, 1895 को गगोड़े ग्राम (महाराष्ट्र) में हुआ और गोवध पर प्रतिबंध की मांग को लेकर अनशन के कारण 15 नवम्बर 1982 में शरीरान्त हुआ।

18 अप्रैल, 1951 में जब विनोबा आंध्र पोचमल्ली ग्राम की यात्रा पर गये तो ग्राम भूमिहीन हरिजनों ने बताया कि रोजगार न होने से उनकी माली हालत बहुत खराब है। यदि उन्हें खेती की जमीन मिल जाए तो वे जिंदा रह सकते हैं। विनोबा जी ने गांव के जमींदारों से अपील की कि वे स्वेच्छा से भूमि दान करें। इस पर एक किसान ने 80 एकड़ भूमि दान कर दी। इससे प्रभावित हो विनोबा जी ने देश भर में 13 वर्षों तक भूदान यज्ञ आंदोलन चलाया। वे 58,741 किलोमीटर पैदल घूमते रहे और गरीबों के लिए भूमि मांगते रहे। उन्हें 44 लाख एकड़ भूमि दान में मिली। अपने जीवन काल में 13 लाख एकड़ भूमि गरीबों को बांट गए। वाराणसी के समाजवादी नेता राजनारायण ने भी अपनी सारी जमीन जो हजारों बीघा में थी, विनोबा को दान कर दी थी।

पचास के दशक में विनोबा जी के भूदान आंदोलन का मुजफ्फरनगर में भी प्रभाव पड़ा। बिंदल साहब के नाम से प्रसिद्ध एक महानुभाव विनोबा और उनके मिशन के प्रचार में लगे रहते थे। बाद में सामाजिक कार्यकर्ता एवं वरिष्ठ अधिवक्ता होतिलाल शर्मा विनोबा, सर्वोदय आंदोलन में सक्रिय हैं।

मुजफ्फरनगर में गरीबों, दलितों को आवंटित पट्टों व जमीनों का क्या हुआ कोई बताने को तैयार नहीं। भूमिहीनों को मिले प्लाटों-जमीनों पर किसके कब्जे हैं, कोई कुछ नहीं बोलता। गांधी-विनोबा के शिष्य मौन है। हां, यह चिंता जरूर है कि अदानी और अंबानी जमीन छीन कर न ले जायें।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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