राष्ट्रवाद के प्रेरणापुंज अटल जी !

आज 16 अगस्त को पुण्यतिथि पर समग्र राष्ट्र उनको आदर से याद कर रहा है। उनके विरोधी भी अटल बिहारी वाजपेयी की खामियां ढूंढने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे। वे सही अर्थों में अजात शत्रु थे, राष्ट्रवाद और देशप्रेम की साक्षात मूर्ति। कठिनतम विपरी परिस्थितियों में भी कंटकाकीर्ण राहों में भी देश को प्रगतिपथ पर ले जाने का अदम्य हौसला अटल जी में कूट-कूट कर भरा था। कवि हृदय राजनेता ने अपने जीवन को इन्हीं उदान्त भावनाओं से जिया और करोड़ों भारतीयों की प्रेरणापुंज बने।
उनकी कविता की ये पंक्तियां अचानक ही याद आ गई:

बाधाएं आती हैं आएं,
घिरें प्रलय की घोर घटाएं।
पांवों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं
निज हाथों से हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।

अटल जी की अटल राष्ट्रभक्ति का आकलन कर विपक्षी नेता होते हुए भी तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने उन्हें कश्मीर पर भारत का पक्ष रखने के लिए अपना प्रतिनिधि बना कर संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा भेजा था। यद्यपि छद्म सेक्यूलरवादी कांग्रेस हाईकमान को नरसिम्हा राव का यह देश प्रेम बहुत अखरा और इस खलिश के कारण दिवंगत होने के पश्चात उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय में श्रद्धांजलि अर्पण हेतु प्रवेश नहीं होने दिया।

अटल जी ने पड़ोसी की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाकर सनातन भारतीय परंपरा को कायम रखने का प्रयास भी किया तो विश्वासघाती पाकिस्तान के पंजों से कारगिल भी वापस छीना। उन्होंने पाकिस्तान को चेता दिया कि कश्मीर को हथियाने के उसके मंसूबे कभी पूरे नहीं होंगे:

धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से
कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो
हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से
भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो

तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित की भावना को सार्थक करने वाले महान् राष्ट्रपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी को हमारा कोटि-कोटि नमन!

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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