स्वतंत्र न्यायपालिका, दबाव और तानाशाही !

12 जून को जस्टिस जग‌मोहनलाल सिन्हा द्वारा भ्रष्ट आचरण के कारण चु‌नाव रद्द किये जाने के बाद इंदिरा गांधी को नैतिकता के आधार पर प्रधानमंत्री पद त्याग देना चाहिये‌ था किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। प्रधानमंत्री बने रहते हुए उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध निर्णय को रद्द करने की याचिका डाली। 24 जून, 1975 को इंदिरा जी को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम स्टे मिला किन्तु उसमें शर्त लगा दी गई कि वे संसद में मतदान नहीं कर सकतीं। एक प्रकार से इलाहाबाद हाईकोर्ट और देश की सवोच्च अदालत ने उनके हाथ बांध दिए थे।

इंदिरा गांधी किसी भी परिस्थिति में सत्ता से चिपके रहना चाहती थीं। प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने अपने निकटवर्ती कांग्रेस नेताओं की बैठक बुलाई। तत्कालीन कानून मंत्री सिद्धार्थ शंकर राय , विद्या चरण शुक्ल, बंसीलाल आदि ने कहा कि कुर्सी बचाने का एक ही उपाय है कि जैसे अंग्रेजों ने विपक्ष (आजादी समर्थक) प्रेस की आवाज को द‌बाने के लिए डिफेंस ऑफ इंडिया रुल लागू किया था, वैसे ही जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति की मुहिम, विपक्ष तथा प्रेस को नियंत्रित करने के उद्देश्य से देश में आपातकाल घोषित किया जाए और नागरिक अधिकारों से सामान्यजन को वंचित कर दिया जाए।

तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने 25 जून 1975 की अर्द्ध‌रात्रि को आपातकाल लगाने की घोष‌णा पर हस्ताक्षर किये। आपातकाल की घोषणा होते ही सबसे पहला काम प्रेस सेंसरशिप लागू करने का हुआ। बहादुर शाह जफर मार्ग (मथुरा रोड) स्थित समाचार पत्रों के प्रेसों की बिजली व टेलीप्रिंटर तथा टेलेक्स कनेक्शन काट दिये गए, संपादकों, प्रकाशकों व प्रमुख पत्रकारों जैसे कुलदीप नैयर, एम. मलकानी, रमेशचन्द्र आदि सैकड़ों को जेल में ठूंस दिया गया। आपातकाल में प्रेस पर दमन चक्र कैसे चला, जे.पी. समेत विपक्ष के नेता, कार्यकर्ता कैसे जेलों में डाले गए, आपातकाल के इतिहास के काले पन्ने उस समय के लोगों को याद हैं, जिन्हें कभी बाद में पलटेंगे। जबरन नसबंदी अभियान में मुजफ्फरनगर में क्या हुआ था, वे दृश्य भी विस्मृत नहीं हुए हैं।

आपातकाल में नागरिक अधिकारों, कानून-संविधानिक नियमों को ब्यूरोक्रेसी, पुलिस ने उठाकर ताक पर रख दिया था। कथित लोकतंत्र की आड़ में गैर जिम्मेदार, गैर जवाबदेह ख़ुद मुख्त्यार नौकरशाही हावी हो गई। जिस प्रकार इंदिरा गांधी के इर्द-गिर्द चापलूसों की टोली एकत्र रहती थी, ऐसे ही राज्यों एवं जिलों के कांग्रेस नेताओं को चापलूस मंडली घेरे रहती थी।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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