आतंकियों से सेना निपटेगी, घर के सांप-बिच्छुओं से कौन निपटेगा?

हिन्दू मुस्लिम भावनायें भड़‌का कर मोहम्मद अली जिन्ना ने भारत के टुकड़े करवा दिये जिसका साथ जवाहर लाल नेहरू ने दिया। विभाजन के बाद भी हिन्दू विरोधी जहरी से नागों को चैन नहीं आया तो 1948 में जम्मू-कश्मीर पर इस लिए हमला कर दिया गया कि उसका शासक हिन्दू (महाराजा हरि सिंह) था। सरदार पटेल न होते तो पूरा कश्मीर हड़प लिया जाता।

गजवा ए हिन्द का नारा लगाने वालों ने 1990 में कश्मीर के हिन्दुओं पर सीधा हमला बोला जो लाखों कश्मीरी पंडितों के उत्पीड़न और पलायन के नाम से इतिहास में दर्ज है। इसके पश्चात भी घाटी में हिन्दुओं की लक्षित हत्यायें होती रहीं, इनका विवरण और रिकार्ड दस्तावेजों तथा इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के रूप में उपलब्ध है।

22 अप्रैल का हमला भी इसी हिन्दू विरोधी मानसिकता की एक कड़ी है। पाकिस्तान में चाहे कठपुतली सरकारें हों या सैन्य शासन, सभी हिन्दू हिन्दुस्तान के विरुद्ध कठमुल्लाओं को संरक्षण देकर दहशतगर्दी की फौज तैयार कराने में तत्पर रहते है।

भारत के विरुद्ध पाकिस्तान के अघोषित युद्ध में पाकिस्तान का पलड़ा इस लिए भारी रहता है कि वह न केवल आतंकियों की फौज तैयार करता है बल्कि उसने अपने गुर्गे, आतंकियों के मदद‌गार, भारत में अराजकता, दंगे और यहां तक गृहयुद्ध भड़‌काने वालों की पलटन खड़ी कर दी है।

पहलगाम हमले के बाद ये सब अपने बिलों से निकल आए हैं, हालांकि एक बड़ा तबका पहले से गद्दारी पर उतरा हुआ था। पाकिस्तान और दहशतगर्दी के ये हिन्दुस्तानी हिमायती कहते हैं कि आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता। किन्तु इनके हाथों मरने वालो का धर्म होता है। किन्तु हम कहते हैं कि गद्दारों का कोई धर्म नहीं होता। वे किसी भी मजहब, किसी भी जाति के हो सकते हैं। पहले भी हुए हैं, आज उनसे कहीं ज्यादा खूंखार और खतरनाक हैं।

पहलगाम में हमला होते ही ये सब देशद्रोह के काम में लग गए हैं। भले ही इन्होंने बुद्धिजीवी दानिश्वर होने का चोला पहन रखा हो, सोशल एक्टिविस्ट या समाजसेवी का मुखौटा लगाये हों, न्यायपालिका में घुसे हों अथवा लेखक, पत्रकार का वेश धारण कर खुद को चौथा स्तंभ बताते हों, पर ये वास्तव में राष्ट्र‌हित को डंक मारने वाले सांप और बिच्छू ही है, सेना तो आतंकियों से निपटने में पूर्ण सक्षम है, इन गद्दारों से कैसे और कौन निपटेगा।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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