इसे बिजली/विद्युत विभाग न कह कर गड़बड़झाला विभाग कहा जाये, तो अनुचित न होगा। इधर गर्मी ने दस्तक दी, उधर पॉवर कॉरपोरेशन ने ग्रामों की बिजली सप्लाई का शेड्यूल बदला वरन् आपूर्ति का समय (घंटे) भी घटा दिए। इस बेतुके निर्णय से परेशान किसानों को धरना-प्रदर्शनों पर मजबूर होना पड़ रहा है। प्रश्न है कि यह गलत और किसानों को परेशान करने वाला फैसला क्यों लिया गया जबकि सरकार के कर्णधार किसान हित की बातें करने से नहीं अघाते?
उत्तर प्रदेश पॉवर कॉरपोरेशन में जबरदस्त लाइन लॉस है। सीधे-सीधे यह बिजली चोरी है। एक सप्ताह पूर्व मुख्य विद्युत अभियन्ता ने कहा था कि चरथावल कस्बे में 50-55 प्रतिशत लाइन लॉस है। जैसे किसी गुण्डे को गुण्डा न कह कर असामाजिक तत्व कहा जाए- बिजली चोरी को लाइन लॉस कहने का क्या औचित्य।
जब बिजली चोरी रोकने को जेई व संविदाकर्मी जाते हैं तो उन्हें पीटा जाता है। पुलिस प्राथमिकी दर्ज कर चुप बैठ जाती है। बिजली चोरों का हौसला इतना बढ़ा हुआ है कि विद्युत कर्मियों का उत्पीड़न बेखौफ करते हैं। दूसरी और बिजली बिल में हेराफेरी, रिश्वतखोरी की शिकायतें हैं। नलकूपों को मुफ्त बिजली चाहिए, मीटर उखाड़ देंगे लेकिन पिछला बकाया अदा नहीं करेंगे।
बिजली चोरी कराता कौन है? जेई से लेकर अधीक्षण अभियन्ता तक सवालों के घेरे में हैं। करोड़ों के घोटाले खुलते हैं, निलंबित होते हैं, फिर बहाली हो जाती है या जज साहब की कृपा बरस जाती है। छोटे अधिकारी वरिष्ठ अधिकारियों पर दबाव, शोषण का आरोप लगाते हैं। अगड़ा-पिछड़ा, स्वर्ण-दलित के नाम पर यूनियन बनती हैं। रोज लाल झंडे उठाये फिरते हैं।
इन हालात में न सरकार संतुष्ट, न पॉवर कॉरपोरेशन और न ही बिजली उपभोक्ता। घेर घोटकर तलवार ईमानदार उपभोक्ता के गले पर रखी जाती है जो ईमानदारी से समय पर भुगतान करते है। मगरमच्छों को छेड़ने का साहस किसी में नहीं। गोलमाल है, सब गोलमाल है। कुछ नहीं हो सकता तो बिजली विभाग का नाम गड़बड़झाला विभाग ही रख दीजिए, यह तो नाम बदलने का दौर है।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’