न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर जारी विवाद के बीच उत्तराखंड में धान खरीद का रिकॉर्ड टूट गया है। इस साल किसान अब तक खाद्य विभाग, सहकारिता विभाग, एनसीसीएफ और नैफेड को तय टारगेट से करीब 40 प्रतिशत ज्यादा धान बेच चुके हैं।
और, धान खरीद अब भी जारी है। कच्चा आढ़तिया और खुले बाजार में धान बेचने की बजाय इस साल किसानों ने सरकारी व्यवस्था पर ज्यादा भरोसा जताया।धान खरीद सत्र में उत्तराखंड हर साल 100 लाख कुंतल धान खरीदता है।
इसमें 25 लाख कुंतल खाद्य विभाग समेत चार सरकारी एजेंसियों के खरीद केंद्रों के जरिए खरीदा जाता है। बाकी धान की खरीद कच्चा आढ़तिया के जरिए होती है।
राज्य गठन के बाद से पिछले साल तक धान खरीद में सरकारी क्रय केंद्रों का रिकॉर्ड कभी बेहतर नहीं रहा। 25 लाख के मुकाबले सरकारी खरीद कभी भी 11 लाख कुंतल तक भी नहीं पहुंचा। इस बार यह आंकड़ा 34 लाख कुंतल पर पहुंच गया है।
यह रही वजह: इस साल सरकार ने धान खरीद केंद्रों की संख्या में इजाफा किया है। राज्य में 242 खरीद केंद्र बनाए गए। पहले इनकी संख्या 200 से भी कम रहती थी। इस वजह से किसानों को धान बेचने में दिक्कत नहीं हुई। दूसरा, कोरोना-लॉकडाउन की वजह से पर्याप्त मात्रा में अनाज बांटा गया है। बाजार में मांग कम रहने से व्यापारियों ने ज्यादा रुचि नहीं दिखाई।
किसान का फायदा: सरकारी खरीद केंद्र पर धान बेचने का फायदा किसान को भी मिला है। इस साल सरकार ने कॉमन धान का एमएसपी 1,868 रुपये प्रति कुंतल और ग्रेड-ए धान का एमएसपी 1,888 प्रति कुंतल रखा। किसानों को खुले बाजार की बजाय सरकारी केंद्रों पर बेहतर मूल्य मिला। हालांकि, सहकारिता विभाग के केंद्रों से 200 करोड़ रुपये का अभी बकाया है।खरीद का ब्योरावर्ष सरकारी खरीद (लाख कुंतल)
2014-15 5.42
2015-16 7.94
2016-17 8.07
2017-18 5.49
2018-19 6.90
2019-20 10.76
2020-21 34.00 इस साल सरकार ने खरीद केंद्र बढ़ाए हैं। वरना, पहले बिचौलिया आकर औने-पौने दाम पर किसानों से धान खरीद ले जाते थे। किसानों ने इस बार काफी धान कम मूल्य पर बेचा, पर खरीद केंद्रों पर भी खूब धान आया। सहसपुर क्षेत्र में कई नए केंद्र थे, जिनसे किसानों को फसल बेचने में आसानी रही। सभी किसानों की यही मांग कि एमएसपी बढ़ाई जाए और खरीद केंद्रों की संख्या को भी बढ़ाया जाए।
मोहम्मद कमरुद्दीन, सचिव-किसान सभासरकारी एजेंसियों के क्रय केंद्रों पर तो भरपूर धान खरीदा ही गया है। राज्य का ओवरऑल 10 लाख मीट्रिक टन का टारगेट भी पूरा हो गया। इसका लाभ यह है कि किसानों को एमएसपी के अनुसार उनकी फसल का मूल्य मिला। अधिकांश किसानों को भुगतान किया जा चुका है। सहकारिता विभाग से खरीद के बिल प्राप्त हो रहे हैं। उनका भी धीरे-धीरे भुगतान हो रहा है। यह बकाया अधिकतम 200 करोड़ रुपये तक ही रह गया है। भविष्य में भी किसानों को बेहतर सुविधाएं दी जाएंगी, जिससे उन्हें अपने घर के पास ही फसल बेचने की सुविधा और बेहतर मूल्य मिल सके।