अब तो आ जाओ कन्हैया !

संपूर्ण भारत में योगिराज श्री कृष्ण, जिन्हें करोड़ों श्रद्धालुजन ईश्वर का अवतार मानकर पूजते हैं का जन्म श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में अति श्रद्धा, उत्साह, प्रेम, उमंग के साथ मनाई जा रही है। अनेक संकटों, विदेशी आक्रांताओं, अत्याचार-दमन-उत्पीड़न के झंझावतों को सहते हुए भारतवासियों ने सर्वोच्च बलिदान देकर अपने आराध्य के प्रति श्रद्धा-आस्था-समर्पण भाव सुदृढ़ रखा। भारतीयों में श्रीकृष्ण के प्रति अटूट श्रद्धा है। यह ईश्वर के प्रति भक्तिभाव से ज्यादा इंसान का स्वार्थभाव है क्यूं कि उसकी धारणा है कि भगवान दयालु है, कृपालु है और संकट मोचक है। शायद ही करोड़ों में कोई एक विरला व्यक्ति होगा जो अनासक्त भक्तिभाव से ईश्वर को आठों पहर याद रखता हो क्यूंकि सब नश्वर मोह माया के फंदे में जकड़े हुए हैं।

संसारी जीवों की प्रवृत्ति संकट में ईश्वर को गुहार लगा के आपदाओं से उबारने की है। ईश्वर की आरती-वंदन सब इस मानवीय लिप्सा के इर्द-गिर्द घूमने वाली धार्मिक प्रक्रिया भी है।

आज देश-दुनिया की क्या स्थिति है। राक्षसी दुराग्रही शक्तियां कैसे मानवता को ग्रस कर रही हैं! विश्व में चारों और मारकाट, खून-खराबा और कतलो-गारत का दौर-दौरा है। शक्तिशाली देश कमजोर मुल्कों को निगलने को आतुर हैं। उत्तर कोरिया व चीन के शासकों संहारक आणविक मिसाइलों के बटनों पर हाथ धरे बैठे हैं। ईरान, पाकिस्तान जैसे देश पटाखों की तरह एटम बमों के इस्तेमाल की रोज धमकियां देते हैं।

और भारत की स्थिति क्या है? जनता द्वारा चुने प्रतिनिधियों को गाली-गलौच, हिंसा, अपमान का शिकार बनाया जाता है। भाई-भाई का दुश्मन बना है। गरीब, नि:सहाय लोगों की इंसानी रूपी भेड़िये चारों ओर से नोच रहे हैं। 3-4 वर्ष की फूल जैसी बच्चियों को निर्दयता से शिकार बनाते हैं। जिन डाक्टरों, दवा विक्रेताओं का काम मरीज के प्राण बचाने का है, वे कोरोनाकाल का फायदा उठा लाशों से भी पैसा वसूलने की जुगत भिड़ाते हैं। जिन नेताओं के अधिकारियों के हाथों शासन की बागडोर है वे अपनी तिजोरियां भरने और परिवार को मालामाल करने में लगे हैं। बच्चों का एक बूंद दूध और प्राणरक्षक औषधियां भी मिलावटी व नकली मिलती है। माफिया जेलों के भीतर रंगदारी वसूलते हैं। पुलिस पीड़ितों का चालान काटती है। गरीब को न्याय सुलभ नहीं, धर्म के नाम पर पाखंड है। जिस देश में गोपाल को भगवान माना गया वहां खुद को कृष्ण का वंशज बताने वाले नेता गाय-बछड़ों का चारा चट कर जाते हैं और वोटों के लालच में गौ भक्षकों की पीठ थपथपाते हैं। ओवैसी कहता है कि गौमांस खाना है तो मुझे वोट दो और मार्कण्डेय काटजू छाती ठोक कर कहता है- हां, मैं गौभक्षक हूं, बिगाड़ो मेरा क्या बिगाड़ोगे! गुंडे-बदमाश दनदनाते घूम रहे हैं और नेक इंसान मुंह छिपाता फिर रहा है।

कन्हैया! तुमने तो गीता में कहा था-

तनज्जुल पै जिस वक्त होता है धर्म, अधर्म आ के करता है बाज़ार गर्म,
यह अंधेर जब देख पाता हूं मैं, तो इंसा की सूरत में आता हूं मैं।
भलों को बुरों से बचाता हूं मैं, बुरों को जहां से मिटाता हूं मैं।
बड़े धर्म की फिर जगाता हूं मैं, अयां होके युग-युग में आता हूं मैं।

क्या पाप का घड़ा अभी पूरा नहीं भरा? आप कब आओगे कन्हैया?

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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