छपार की प्राचीन इमारत की सुरक्षा की मांग !

ग्राम छपार के प्रधान जुबैर ने जिला अधिकारी को पत्र लिख कर मांग की है कि गांव के बीच स्थित 300 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक गढ़ी को सुरक्षित रखने का उपाय करें। ग्राम प्रधान का कहना है कि यह प्राचीन इमारत इसके मालिकान ने नई मंडी के किसी व्यक्ति को बेच दी है जो गढ़ी का मुख्य द्वार बंद कराके भीतर जेसीबी से खोदाई करा रहा है, जिसे तुरंत रोका जाये।

यह गढ़ी सहारनपुर के जमींदार परिवार ने दशकों पहले बनवाई थी। गढ़ी छपार रियासत वालों के नाम से विख्यात है जिसका मालिकाना हक़ सेठ जी की पुत्री मुसम्मात दयावती को मिल गया था क्योंकि सेठ जी के कोई पुत्र नहीं था। विशनचंद उनके घर-जमाई थे जो छत्ता जम्मूदास, चाहशोर मौहल्ला सहारनपुर की पुरानी हवेली में रहते थे। बाद में उन्होंने रेलवे रोड स्थित अपनी रियासती जमीन पर नई कोठी, बिजनेस काम्प्लेक्स व नटराज होटल बनवा लिया था। प्रसिद्ध साहित्यकार और स्वाधीनता संग्राम सेनानी पद्मश्री कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ का विकास प्रेस तथा पुलिस चौकी छपार रियासत वालों की कोठी में आज भी स्थित है।

खेद है कि पुरानी तथा ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण की ओर सरकारों का ध्यान नहीं है। कई प्राचीन इमारतें व स्मारक हमारे देखते-देखते नष्ट हो गए। मुज़फ्फरनगर रुड़की रोड पर पुरानी चुंगी से पहले शाहबुद्दीनपुर रोड के मोड़ के पास शेरशाह सूरी द्वारा बनाई गई चौकी व कुआं 50 वर्ष पूर्व तक सुरक्षित था, वहां अब इसका नामोनिशान नहीं है। रामपुर तिराहे से रोहना जाने वाली सड़क पर इसी काल का काली नदी पुल जो बावनदरा के नाम से जाना जाता था, अब से 50 वर्ष पहले तक सुरक्षित था, नया पुल बनने के बाद खात्मे की ओर है। इसी तरह वहलना के किले का दरवाजा भी ढहने की कगार पर है। बेगरजपुर के पूर्व में बनी बंजारे के वफादार कुत्ते की कब्र फार्म के मालिकों ने उखाड़ फेंकी। जानसठ के किंग मेकर कहलाने वाले सैयद भाइयों के महल का किल्ली दरवाजा जीर्णशीर्ण अवस्था में है। शुक्रताल में मराठा काल में बनाया गया कच्चा किला देखते-देखते गुम हो गया। ग्राम फिरोजपुर में महाभारत कालीन शिवमंदिर पर अभी किसी ने कब्ज़ा नहीं किया है। इसी प्रकार ग्राम सम्भलहेड़ा का प्राचीन शिवमंदिर अभी बचा हुआ है। सैयद भाइयों के ज़माने का बना ग्राम जौली का मजार जमींदोज होने के इंतजार में है। लगभग एक मास पहले छपार के ग्राम प्रधान की तरह ग्राम फलावदा के प्रधान मनु चौधरी ने जिला अधिकारी को पत्र लिखकर मांग की थी कि फलावदा-खतौली मार्ग पर बना मुग़लकालीन दरवाजे के संरक्षण पर ध्यान दिया जाये।

सरकार मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त राशन पर अरबों रुपये खर्च करती है किन्तु प्राचीन स्मारकों व ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण की जिला स्तर पर एक पैसा भी खर्च नहीं करती। गनीमत है कि केंद्रीय राज्यमंत्री डॉक्टर संजीव बालियान द्वारा रुचि लेने पर ग्राम सोरम के ऐतिहासिक सर्वखाप पंचायत भवन के संरक्षण की ओर सरकार का ध्यान गया है।

हमारा मुख्यमंत्री जी से अनुरोध है कि वे सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा के लिए जिलास्तर पर बजट का प्रावधान करें। जिला अधिकारियों को अधिकार प्राप्त हो कि वे प्राचीन स्मारको व भवनों को सार्वजनिक संपत्ति घोषित कर सकें और उनके मालिकान को मुआवजा देकर इन इमारतों का संरक्षण करायें। जन प्रतिनिधियों को वोट बैंक पर ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा व संरक्षण के प्रति भी संवेदनशील होना चाहिए। ग्राम प्रधान जुबैर की अपील को ऊपर तक पहुँचाना क्षेत्रीय विधायक का भी कर्तव्य है।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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