समाचार है कि मुजफ्फरनगर के भोपा थाना के अन्तर्गत ग्राम नंगला बुजुर्ग के ग्रामीणों ने देखा कि गांव का एक मुस्लिम जंगल में घूम रहे निराश्रित गोवंश को पकड़ कर कटान के उद्देश्य से घर ले आया है। पुलिस जब उसके घर पहुंची तो गोवंश को सही सलामत पाया। उस व्यक्ति ने कहा कि वे उसके पालतू पशु है। थानाध्यक्ष ने गोवंश की फोटोग्राफी करा के उसे छोड़ दिया।
पुलिस की दृष्टि से अपराध तभी बनता जब गोवंश कटे मिलते। नंगला बुजुर्ग के ग्रामीणों की शिकायत गलत हो सकती है लेकिन निराश्रित गोवंश के अवैध कटान से इंकार नहीं किया जा सकता।
मुजफ्फरनगर में सुबह तड़के मांस से भरे ठेले या रिक्शा रोज़ जाते दिखाई पड़ते हैं। यह गोमांस है या अन्य किसी पशु का, यह जांच का विषय है किन्तु इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि सड़कों और जंगलों से निराश्रित गोवंश अचानक गायब हो जाता है। आशंका होती है कि इनका कटान हो जाता है।
इस समस्या का दूसरा दुःखद पहलू यह है कि पशुपालक एवं किसान गाय के बछड़ों को निराश्रित क्यूं छोड़ देते हैं? उत्तर प्रदेश सरकार प्रति पशु 900 रुपये मासिक किसान को देती है। पूरे प्रदेश में करोड़ों रूपयों की लागत से गोसदन या पशु संरक्षण केन्द्र स्थापित कराये गए हैं, इनका उपयोग क्यूं नहीं किया जाता?
निराश्रित गोवंश गांव व शहर दोनों के लिए समस्या है। जब राज्य सरकार गोवंश के संरक्षण के लिए करोडों अरबों रुपया खर्च कर रही है तो इनका अवैध कटान क्यूं हो रहा है। हर जिले के जिला अधिकारी व पुलिस अधीक्षक को इसके प्रति जवाबदेह बनाया जाए।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’