पृथ्वी की तरह चंद्रमा पर भी भूकंप आते हैं। इन्हें चंद्रकंप कहा जाता है। दिलचस्प बात यह है कि पृथ्वी पर जहां चंद सेकंड के लिए भूकंप के झटके आते हैं, वहीं चंद्रकंप के कारण चंद्रमा एक से डेढ़ घंटे तक डोलता रहता है। देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूवज्ञिान संस्थान के भूकंप वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार के अनुसार, नासा ने चंद्रमा के मिडिल पाथ में छह बार वैज्ञानिकों को भेजा था और वहां पर छह सस्मिोग्राफ के सेटअप लगाए थे।
इनसे मिले डाटा का वश्लिेषण किया गया। डॉ. सुशील ने बताया कि पृथ्वी पर टेक्ट्रॉनक्सि एक्ट्रॉनक्सि, यूरेशियन और इंडियन प्लेट की टकराहट से अक्सर भूकंप आते हैं। इसके अलावा ग्रेविटी या मैग्नेटिक फील्ड की वजह से भी भूकंप आते हैं। वहीं चंद्रमा पर कंपन की एक वजह यह है कि पृथ्वी चंद्रमा को अपनी ओर खींचती है।
चंद्रमा पर नुकसान नहीं
डॉ. सुशील कुमार के मुताबिक, चंद्रमा पर पहाड़ बहुत बड़े-बड़े हैं। पृथ्वी पर वायुमंडल है, जिसकी वजह से पृथ्वी के पहाड़ों का कटाव हो जाता है। चंद्रमा पर वायुमंडल ना होने से चंद्रमा के पहाड़ों का कटाव नहीं हो पाता। चंद्रमा पर कोई स्ट्रक्चर नहीं होने की वजह से चंद्रकंप से वहां कोई नुकसान नहीं होता।
तापमान में भी बड़ा उतार-चढ़ाव
वैज्ञानिकों के मुताबिक चंद्रमा पर दिन का तापमान 194 डग्रिी सेल्सियस तक रहता है। वायुमंडल नहीं होने से रात के समय वहां का तापमान माइनस 137 डग्रिी सेल्सियस तक चला जाता है। इससे चंद्रमा की सतह की पपड़ी सिकुड़ती और फैलती है। इस वजह से भी चंद्रमा पर छोटे-छोटे चंद्रकंप आते हैं।
कंपन की यह भी हैं वजह
डॉ. सुशील कुमार बताते हैं कि अन्य तरह से भी चंद्रकंप आते हैं। सबसे गहरे चंद्रकंप सतह से 700 किलोमीटर नीचे आते हैं। उल्काओं के टकराने और थर्मल कंप से भी चंद्रमा डोलता है। इसके अलावा कंपन सतह से 20-30 किलोमीटर नीचे भी दर्ज हो रहे हैं।
700 किमी तक रहती है चंद्रकंप की गहराई
चंद्रकंप सतह से करीब 700 किलोमीटर गहरे तक हो सकते हैं। अहम बात यह भी है कि चंद्रकंप सेकंड में खत्म नहीं होते, बल्कि कई घंटे तक इनका असर रहता है। इसकी वजह यह है कि चंद्रमा पर घर्षण नहीं होता है। इसलिए एनर्जी एक बार चंद्रकंप से निकलती है, उसका असर करीब 70 से 80 मिनट तक रहता है।