किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह की 38वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धानवत होते हुए उनके सानिध्य में बिताये कुछ पलों को याद कर रहा हूँ। 1974 के चुनाव दौरे में, उससे पूर्व और चुनाव के बाद, मुजफ्फरनगर जिले में चौधरी साहब के प्रत्येक दौरे को मैंने कवर किया, कार्यक्रमों की फोटोग्राफी की और विस्तार के साथ उनके समाचारों को ‘देहात’ में प्रकाशित किया।
चौधरी साहब के भाषणों में पेशेवर नेताओं जैसे लटके झटके, उत्तेजना या विरोधी पर छींटाकशी जैसा असभ्य बचकानापन नहीं होता था। कभी शहरों और गांव के बीच के अन्तर की बात कहते, प्रतिव्यक्ति आय और जीडीपी के आंकड़े बताते तो कभी आदर्श समाज की कल्पना पेश करते थे। आंकड़े इतने याद थे मानों कोई अर्थशास्त्री कक्षा में छात्रों को पाठ पढ़ा रहा हो।
उनकी जनसभाओं में किसानों की भीड़ उमड़ पड़ती थी। आंकड़े व नीतियां बुद्धिजीवी वर्ग को चिन्तन-मनन के लिए प्रेरित करती थीं। वे नीतियां किसान, समाज, देश के उत्थान की थीं जिनका विश्लेषण आज भी अर्थशास्त्री नीति नियंता लाइट हाउस के समान करते हैं। गांव का निवासी और किसान मानता था कि चौधरी चरण सिंह उन का नुमायंदा, उनका अपना आदमी है। जो कह रहा है, उनके हित में कह रहा है। उन पर लोगों का अटूट विश्वास रहा।
सामान्य रूप से चौधरी साहब सार्वजनिक जीवन में गम्भीर एवं सरल, एक साथ दिखाई देते थे। सत्तर के दशक में मुजफ्फरनगर जिले के खेड़ी सुंडीयान गांव में दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी। पुलिस ने तलाशी के नाम पर गांव में जम कर तांडव मचाया था। महिलाओं के साथ भी अभद्रता हुई थी। मैं भी चौधरी साहब के साथ खेड़ी सुंडीयान गया था। उन्होंने सारा घटनाक्रम तन्मयता से सुना। हर पल उन के चेहरे पर तनाव, क्रोध की रेखायें उमरती जा रही थीं। जब वे एक पीड़ित महिला से बात कर रहे थे तो मैंने एक फोटो खींचना चाहा। उन्होंने हाथ के इशारे से मुझे रोक दिया। खेड़ी सुंडीयान से सीधे मुजफ्फरनगर कलेक्ट्रेट पहुंचे। कलेक्ट्रेट में जिला अधिकारी समेत सभी वरिष्ठ अधिकारी गायब मिले। पुलिस अधीक्षक भी गायब थे। चौधरी साहब शान्त थे, न उत्तेजित, न क्रोधित। उनके मुजफ्फरनगर से जाने के बाद एक सप्ताह के भीतर कई अधिकारियों का लदान हो गया। कुछ निलंबित भी हुए। काम करने का उनका यही तरीका था, जिसे आज भी लोग याद करते हैं। पुण्यतिथि पर हमारा नमन्।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’