आर.टी.आई. कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल की ओर से दाखिल आवेदन पर सुनवाई के बाद केन्द्रीय सूचना आयुक्त उदय माहुरकर ने कहा कि इमामों और मुअज्जिनों को सरकारी खजाने से वेतन दिया जाना संविधान के अनुच्छेद 27 का उल्लंघन है। 13 मई 1993 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण अनावश्यक रस्साकशी और सामाजिक असामंजस्य की स्थिति पैदा हुई। श्री माहुरकर ने कहा कि करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल किसी एक धर्म को बढ़ावा देने में नहीं किया जा सकता। सरकारी धन के मामले में सभी धर्मों- सम्प्रदायों के पुरोहितों (इबादत व पूजा करने वाले) से एक एक जैसा बर्ताव होता चाहिए। दिल्ली सरकार दिल्ली वक्फ बोर्ड को 62 करोड़ रुपये वार्षिक अनुदान इमामों व मुअज्जिनों को 18 हजार तथा 16 हजार मासिक वेतन बांटने को देती है। इसके उलट एक हिन्दू मंदिर के पुजारी को मन्दिर के ट्रस्ट से मात्र 2 हजार मासिक वेतन मिलता है।
श्री माहुरकर ने कहा कि मुस्लिम समुदाय को धार्मिक लाभ देने जैसे कदम, वास्तव में धार्मिक सद्भाव को गम्भीर रूप से प्रभावित करते हैं।
सूचना आयुक्त ने अपने आदेश की प्रति केन्द्रीय कानून मंत्री को भेजने का निर्देश दिया ताकि संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक का सही अर्थों में पालन सुनिश्चित हो सके।
सूचना आयुक्त के फैसले से देश में राजनीति से लेकर न्यायपालिका तक की घुड़दौड़ की असलियत बयान कर दी है। देश की जनता को सोचना पड़ेगा कि तुष्टीकरण को बढ़ावा देने से देश में समरत्ता बढ़ेगी या इंडिया तेरे टुकड़े होंगे की साजिशें सफल होंगी।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’