दुर्दान्त माफिया अतीक के बेटे और पूर्व विधायक राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या का मुख्य गुनहगार असद का झांसी में एनकाउंटर होने बाद राजनीति का अपराधीकरण कर सत्ता हथियाने वाले नेतागण आपे से बाहर हो रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर विधानसभा में सीधा प्रहार करते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कटाक्ष किया था कि बदमाशों के प्रति आपकी जीरो टॉलरेंस कहाँ चली गई ? अब ये ही अखिलेश कह रहे हैं कि असद के एनकाउंटर से हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे को चोट पहुंची है। यह एनकाउंटर बिल्कुल फर्जी है। अतीक जैसे दुर्दान्त माफिया को पालने-पोसने वालों का बौखलाना स्वाभाविक है।
बसपा सुप्रीमो मायावती के दुःख का कोई पारावार नहीं। असद के एनकाउंटर पर बहिन जी ने कहा कि लोग पहले से कह रहे थे कि असद का विकास दुबे जैसा एनकाउंटर होगा। यह बहुत बड़ा अन्याय है। इस एनकाउंटर की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए।
बहुसंख्यक हिन्दुओं के विरुद्ध चौबीसों घंटे आग उगलने वाले हैदराबादी भाईजान ने तो घोषणा कर दी कि मुसलमानों के घरों पर बुल्डोजर चलाये जा रहे है, उन्हें एनकाउंटर में मारा जा रहा है। आज असद का नहीं, संविधान का एन्काउंटर हुआ है।
यह बिल्कुल तय है कि अतीक व उसके गुर्गों, शार्प शूटरों के पक्ष में और भी नेताओं, सेक्यूलरवादियों, कानून के कथित रखवालों के बयान आयेंगे। कानून की दुहाई दी जायेगी। माफिया को साबरमती से नैनी जेल लाने का वी.वी.आई.पी. से भी बड़ा कवरेज दिया, वे टी.वी.चैनल मानव अधिकारों के संरक्षक बन कर माफिया के पक्ष में धुंआधार प्रचार करेंगे। हो सकता है कि एनकाउंटरों को विपक्ष 2024 के चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाले।
लोकतंत्र, मानव अधिकार और संविधान के इन कथित रखवालों से पूछा जाना चाहिये कि तुम्हारा कानून और अदालतें 44 वर्षों में 161 मुकदमे दर्ज होने के बाद भी उन मजलूमों को न्याय क्यों नहीं दिलवा सके। जिनके जिगर के टुकड़ों की हत्यायें हुई, जिनकी जायदादों पर कब्जे हुए और जिनसे निरन्तर चौथ वसूल होती रही ? क्या इन के पास जवाब है कि मुकदमा या याचिका सुनने वाले हाईकोर्ट के 10 जज (जस्टिस) पीछे क्यों हट गए?
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’