कूड़ा निस्तारण और दिमाग की सफाई !

खबर है कि नगरपालिका परिषद मुज़फ्फरनगर की चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल ने नगर विकास विभाग को पत्र लिखकर शिकायत दर्ज कराई है कि नगर के कूड़ा निस्तारण मामले में पालिका अधिकारियों ने बड़ा खेल कर दिया है। गुरुग्राम की एक फर्म ने मुफ्त में कूड़ा निस्तारण की पेशकश की थी लेकिन अधिकारी इस पत्रावली को 9 मास तक दबाये बैठे रहे और आगरा की एक फर्म को 986.24 लाख रुपये में कूड़ा निस्तारण का काम दे दिया। दूसरी ओर पालिका के अधिशासी अधिकारी हेमराज का कहना है कि फाइल किसी कर्मचारी ने दबाई होगी, उन्होंने तो नहीं दबाई। सारी कार्यवाही ऊपर से (राज्य मुख्यालय) हुई है। जब फ्री में काम होना था तो चेयरपर्सन को भी इसका ध्यान रखना चाहिए था।

पालिकाध्यक्ष, ईओ, नगर स्वास्थ्य अधिकारी और कर अधीक्षक के बीच खींचतान या नूरा कुश्ती का खेल तो बहुत पहले से होता आया है लेकिन ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के दौर में या उससे पहले नगर की सफाई व्यवस्था सुचारु नहीं रही। जनसंख्या वृद्धि, वैध-अवैध बस्तियों तथा अतिक्रमण की भरमार से मुज़फ्फरनगर की सफाई व्यवस्था बिलकुल चौपट हो चुकी है। आलम यह है कि जिस जिला अस्पताल में जिले भर के मरीज़ इलाज व स्वास्थ्य लाभ के लिए आते हैं, वहां मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के बिल्क़ुल समीप ही अस्पताल की दीवार के नीचे बड़ा कूड़ाघर बना हुआ है। प्रधान डाकघर और हमुमान मंदिर में महज 10-15 फिट की दूरी पर कूड़े के ढेर लगते हैं जहां बाजार खुलने के बाद कूड़ा उठाने का कार्य आरंभ होता है और गंदगी, धूल आसपास की दुकानों तथा मंदिर तक रोज पहुँचती है।

हमने तो शहर में सफाई का वह दौर देखा हैं जब बाजार खुलने से दो घंटे पहले ही तमाम शहर व नई मंडी का कूड़ा उठ जाता था और सड़कों पर एक पत्ता भी नहीं दिखाई देता था।

अब नगरपालिका परिषद को नगरनिगम बनाने की कवायद चल रही है। इससे निगम का बजट बढ़ेगा, अधिकारियों, कर्मचारियों के वेतन-भत्तों में इजाफा होगा लेकिन सफाई व्यवस्था का क्या होगा? सफाई को लेकर न पार्षदों में जागरूकता है, न ही नागरिकों में। अभी चंद महीनों पहले रानी अहिल्याबाई तिराहे से गाज़ीवाला पुलिया तक नाली को चौड़ा किया गया था किन्तु इससे जल निकासी की व्यवस्था सुधरने के बजाय और बिगड़ गयी क्योंकि परिवारों का कूड़ा इस नाले में पड़ने लगा। कूड़े व पॉलीथिन पन्नियों से यह नया नाला ऊपर तक भरा है। यही स्थिति पूरे शहर की है। एक सप्ताह पूर्व जिला अधिकारी ने चेतावनी दी थी कि सड़क पर कूड़ा डालने वालों का चालान होगा। इस प्रकार की चेतावनियां कानून के पाबंद लोगों पर असर करती हैं, यहां तो मोहल्लों में लगाए गए गीले व सूखे कूड़ों के डिब्बे व बाल्टियां भाई लोगों ने अरसा पहले बेच खाई थीं।

सफाई के प्रति नागरिकों में 0 प्रतिशत भी जागृति नहीं है। तो इक्का-दुक्का लोग सफाई के प्रति जागरूक हैं, कथित सभ्य समाज के लोग उनकी खिल्ली उड़ाते हैं। और तो और लोग नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान का मजाक उड़ाने में लगे रहते हैं। जब प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन शुरू किया था तब तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था- ढंग के काम करने के बजाय मोदी ने लोगों के हाथों में झाडू पकड़ा दी। हम देखेंगे कि वे काशी में गंगा के घाटों की सफाई कैसे करते हैं। यह नेताओं की मनोदशा है, जनता की मनोवृति कैसी होगी? सड़कों, नालों की सफाई तभी कारामद है जब दिमागों की सफाई हो। तब ऐसी स्थिति में कूड़ा निस्तारण की प्रक्रिया में घोटालों का चक्कर नहीं चलेगा।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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