गंगा प्रदूषण पर हाईकोर्ट की टिप्पणी !

भारत में गंगा जल को अमृत के समान पवित्र और प्राणदायक माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की जटाओं से निकली गंगा की निर्मल धारा से राजा सगर के पुत्रों का उद्धार हुआ था। भगीरथ के प्रयासों से हुए गंगा अवतरण की कथा को कल्पना मान भी लिया जाये तब भी यह सत्य है कि गंगा को माँ का रूप यूंही नहीं दिया गया है, गंगाजल से कई शताब्दियों तक करोड़ो प्राणियों का पालन-पोषण होता रहा।

मुझे एक सन्दर्भ याद आता है मुजफ्फरनगर के प्रमुख एडवोकेट, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पूर्व एम.एल.सी. एवं पत्रकार पं. ब्रहम प्रकाश शर्मा को समाचार पत्र में सम्पादक के नाम पत्र लिखने का शोक था। उनके पास कई हजार एसी कंटिंग संग्रहित थी। बाबूजी के निधन के बाद पूर्व उप निदेशक सूचना अरुण गुप्त ने मुझे इन पत्रों का सम्पादन कर एक पुस्तक प्रकाशित करने का कार्य सौपा था। दुर्भाग्य वश यह कार्य तकनीकी कारणों से मैं पूरा न कर सका। एडवोकेट सन्तोष कुमार शर्मा ने बाद में इस कार्य को सम्पन्न किया यह सब मैं इसीलिए लिख रहा हूँ कि बाबू ब्रहम प्रकाश जी के पत्र संग्रह में गंगा की महत्ता के अनेक पत्र सम्मिलित थे। उनमें बताया गया था कि जयपुर नरेश अपनी ब्रिटेन यात्रा में एक बहुत बड़ा कलश गंगा जल से भरा हुआ विदेश ले गये थे। कई महीनों तक इसी गंगा जल का प्रयोग किया किन्तु गंगा जल में कोई खराबी नही आयी।

आज गंगा की स्थिति क्या है। इससे हम सभी परिचित है। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सारे प्रयास विफल हो गये है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिन्दल की पीठ ने कहा है कि स्वच्छ गंगा मिशन केवल पैसा बाँटने की मशीन बनकर रह गया है। कानपुर में आज भी सारे गंदे नालो का पानी गंगा में गिर रहा है। यह जनता, जनप्रतिनिधियों एवं जननायकों के लिए गन्दे नाले में डूब मरने की स्थिति है।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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