मुंबई में फिल्म अभिनेत्री को सच बोलने का खामियाजा शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की खुली गुंडागर्दी के रूप में भुगतना पड़ा। सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यपूर्ण मृत्यु से लेकर और हाईकोर्ट द्वारा बंबई नगर निगम को मिली फटकार तक सारे प्रकरणों से पूरा राष्ट्र अवगत है।
उद्धव ठाकरे और संजय राउत ने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए बाला साहेब ठाकरे की प्रतिष्ठा को खुटी पर टांग दिया है। अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र को खतरे के नारे लगाने वाले कांग्रेसी मुंबई से दिल्ली तक मुंह पर ताला डाले बैठे हैं। महाराष्ट्र की राजनीति के पितामह कहलाने वाले शरद पवार बोले तो यह बोले कि संजय राउत ने कार्यालय ढहाकर कंगना को और बोलने का मौका दे दिया है।
इस संघर्ष से कंगना का कुछ बिगड़ने वाला नहीं:
रखते हैं औरों के लिए जो प्यार का जज़्बा।
वो लोग कभी टूटकर बिखरा नहीं करते।।
इस एक घटना ने मराठा मानुषों की वास्तविकता और उनके समर्थकों की सच्ची तस्वीर देश को दिखा दी है। उनका क्या हश्र होना है, जनता यह जानती है।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’