प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्राजील के रियो डी जेनेरो में आयोजित 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में वैश्विक शासन प्रणाली की प्रभावशीलता पर सवाल उठाते हुए मौजूदा अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में सुधार की जरूरत को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि 20वीं सदी में स्थापित वैश्विक संस्थाएं आज मानवता के दो-तिहाई हिस्से को प्रतिनिधित्व देने में विफल रही हैं। जब तक ग्लोबल साउथ की भागीदारी इनकी निर्णय प्रक्रिया में सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक ये संस्थाएं प्रभावी नहीं हो सकतीं।
ब्रिक्स विस्तार की सराहना और सुधार की अपील
ब्रिक्स की अध्यक्षता के लिए प्रधानमंत्री ने ब्राजील के राष्ट्रपति लूला का आभार जताया और इंडोनेशिया को समूह में शामिल होने पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स में नए देशों का जुड़ना इस बात का संकेत है कि यह मंच समय के साथ खुद को ढाल रहा है। अब यही इच्छाशक्ति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, WTO और बहुपक्षीय विकास बैंकों जैसी संस्थाओं में बदलाव लाने में भी दिखनी चाहिए।
पुराने ढांचे, नई चुनौतियां
पीएम मोदी ने कहा कि जलवायु वित्त, सतत विकास और तकनीकी पहुंच जैसे अहम मुद्दों पर विकासशील देशों को अभी तक केवल सांकेतिक समर्थन ही मिला है। उन्होंने चेताया कि मौजूदा वैश्विक संस्थान न संघर्षों को रोक पा रहे हैं, न महामारी और आर्थिक संकटों से निपटने में सक्षम हैं। साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष जैसे उभरते खतरे भी इनकी पहुंच से बाहर हैं।
ग्लोबल साउथ की भागीदारी को बताया अनिवार्य
प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि बिना ग्लोबल साउथ की भागीदारी के ये संस्थाएं वैसे ही हैं जैसे सिम कार्ड के बिना मोबाइल। भारत हमेशा से मानवता के हित में निस्वार्थ भाव से कार्य करता रहा है और आगे भी समान सोच वाले साझेदारों के साथ मिलकर काम करने को तैयार है।
संस्थाओं को समय के अनुरूप अपडेट करने की जरूरत
तकनीक के तेजी से बदलते युग की ओर इशारा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आज जहां हर सप्ताह नई तकनीक सामने आती है, वहां 80 साल से बिना बदलाव के चल रही वैश्विक संस्थाओं से परिणाम की उम्मीद नहीं की जा सकती। उन्होंने व्यंग्यपूर्ण अंदाज में कहा, “20वीं सदी के टाइपराइटर से 21वीं सदी का सॉफ्टवेयर नहीं चलाया जा सकता।”