‘भारत तानाशाही बर्दाश्त नहीं करता’- आपातकाल के 50 साल पर बोले अमित शाह

नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को ‘आपातकाल के 50 वर्ष’ पूरे होने पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आपातकाल के समय वे मात्र 11 वर्ष के थे। उन्होंने बताया कि गुजरात में आपातकाल का प्रभाव अपेक्षाकृत कम था क्योंकि वहां जनता पार्टी की सरकार थी, लेकिन वह भी अधिक समय तक नहीं टिक पाई। शाह ने कहा कि वे एक छोटे से गांव से आते हैं और वहीं से 184 लोग जेल भेजे गए थे। उन्होंने उस समय के अनुभवों को अविस्मरणीय बताया।

उन्होंने कहा कि केवल स्वतंत्रता की भावना के चलते जेल जाना कितना कठिन रहा होगा, इसकी आज कल्पना करना भी मुश्किल है। आपातकाल को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि यह वह समय था जब भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र की बहुदलीय प्रणाली को कुचलकर तानाशाही थोपने का प्रयास किया गया।

“भारत में तानाशाही का कोई स्थान नहीं”

शाह ने कहा कि देशवासियों की लोकतंत्र में गहरी आस्था के कारण यह लड़ाई जीत ली गई। उन्होंने कहा कि भारत लोकतंत्र की जन्मभूमि है और उस समय केवल तानाशाही प्रवृत्ति वाले और उनके सहयोगी ही आपातकाल के समर्थन में थे। परंतु जैसे ही चुनाव हुए, जनता ने स्पष्ट संदेश दिया और पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी, जिसमें मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।

“सत्ता बचाने के लिए लगाया गया आपातकाल”

गृह मंत्री ने सवाल उठाया कि 25 जून 1975 की सुबह जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियो पर आपातकाल की घोषणा की, तो क्या इसके लिए संसद से अनुमति ली गई थी? क्या कैबिनेट की बैठक हुई थी या विपक्ष को विश्वास में लिया गया था? उन्होंने कहा कि जो लोग आज लोकतंत्र की बात करते हैं, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वे उसी दल से जुड़े हैं जिसने लोकतंत्र को कुचलने का काम किया। उन्होंने आरोप लगाया कि घोषित कारण राष्ट्रीय सुरक्षा था, जबकि वास्तविक उद्देश्य सत्ता को बचाना था। इंदिरा गांधी के पास उस समय संसद में मत देने का अधिकार भी नहीं था, इसके बावजूद उन्होंने नैतिक मूल्यों को दरकिनार कर प्रधानमंत्री पद पर बने रहने का निर्णय लिया।

“कैबिनेट को अंधेरे में रखकर लिए गए फैसले”

शाह ने कहा कि बांग्लादेश युद्ध में जीत के बाद भी देश पर कोई भी आंतरिक या बाहरी खतरा नहीं था। बावजूद इसके, इंदिरा गांधी ने केवल अपनी सत्ता बचाने के लिए सुबह 4 बजे कैबिनेट की बैठक बुलाई। वरिष्ठ मंत्रियों, जैसे बाबू जगजीवन राम और स्वर्ण सिंह को एजेंडे की जानकारी तक नहीं दी गई थी—सिर्फ सूचना दी गई और गृह सचिव के माध्यम से आदेश पारित करवा दिए गए।

“इंदिरा गांधी की हार पर लोगों के चेहरों पर लौटी मुस्कान”

शाह ने उस रात को याद किया जब लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए थे। उन्होंने बताया कि वे अपने गांव से लोगों के साथ ट्रक में बैठकर एक अखबार के दफ्तर के बाहर परिणाम देखने पहुंचे थे। जब यह खबर आई कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों चुनाव हार गए हैं, तो रात के 3-4 बजे के उस क्षण में हजारों लोगों के चेहरों पर जो खुशी थी, उसे वह कभी नहीं भूल सकते।

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