मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने शनिवार को फिरोजाबाद में निजी दौरे के दौरान बिहार में चल रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान को लेकर महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने कहा कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक चुनाव से पूर्व मतदाता सूची का अद्यतन अनिवार्य प्रक्रिया है, जिससे चुनाव में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
2003 के बाद पहली बार होगा गहन परिशोधन
सीईसी ने बताया कि बिहार में पिछली बार व्यापक मतदाता सूची संशोधन 1 जनवरी 2003 को हुआ था। यानी बीते 22 वर्षों से राज्य में उसी आधार पर मतदान हो रहा है, जिसे अब अद्यतन करना आवश्यक हो गया है। उस समय मतदाता पात्रता की तीन प्रमुख शर्तों—भारतीय नागरिकता, न्यूनतम आयु 18 वर्ष तथा संबंधित क्षेत्र में सामान्य निवास—के आधार पर जांच की गई थी।
राजनीतिक दलों से समन्वय बनाकर किया जा रहा कार्य
ज्ञानेश कुमार ने बताया कि आयोग ने राजनीतिक दलों से तालमेल बनाते हुए इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है। दलों द्वारा सूची में त्रुटियों को लेकर की गई शिकायतों को ध्यान में रखते हुए जुलाई-अगस्त माह में 2003 की तर्ज पर दोबारा गहन परिशोधन किया जाएगा। इस दौरान नए मतदाताओं को सूची में जोड़ा जाएगा और मृत या अयोग्य मतदाताओं के नाम हटाए जाएंगे।
आधुनिक तकनीक से होगी पारदर्शी सूची तैयार
सीईसी ने बताया कि इस अभियान में एक लाख से अधिक बूथ लेवल ऑफिसर और डेढ़ लाख से ज्यादा राजनीतिक दलों के बूथ एजेंट शामिल हैं। मतदाता फॉर्म के साथ दस्तावेज जमा कराने की प्रक्रिया रहेगी, हालांकि जिनके पास तत्काल दस्तावेज नहीं हैं, उन्हें बाद में देने का विकल्प मिलेगा। उन्होंने कहा कि पूरी प्रक्रिया तकनीकी माध्यम से पारदर्शी ढंग से संचालित की जाएगी।
अपात्रों को हटाया जाएगा, पात्रों को जोड़ा जाएगा
ज्ञानेश कुमार ने कहा कि आयोग का लक्ष्य है कि हर योग्य नागरिक का नाम मतदाता सूची में शामिल हो और जिनके नाम अयोग्य रूप से सूची में दर्ज हैं, उन्हें हटाया जाए। विपक्ष द्वारा इस अभियान पर उठाए गए सवालों को लेकर उन्होंने स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग सभी राजनीतिक दलों से लगातार संवाद कर रहा है और सभी पक्षों की भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है।
उन्होंने यह भी कहा, “जब किसी जटिल निर्णय की आवश्यकता होती है, तो हम संविधान के अनुरूप ही कदम उठाते हैं, ताकि किसी प्रकार की अस्थिरता न उत्पन्न हो।”