आईएसएस पहुंचे शुभांशु शुक्ला, 14 दिन तक अंतरिक्ष स्टेशन पर करेंगे 60 वैज्ञानिक प्रयोग

भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला को लेकर गया स्पेसएक्स ड्रैगन कैप्सूल 26 जून को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) से सफलतापूर्वक जुड़ गया। यह जुड़ाव भारतीय समयानुसार शाम करीब 4:30 बजे हुआ, जब यान ने करीब 28.5 घंटे की यात्रा पूरी की। शुभांशु शुक्ला एक्सिओम-4 मिशन के तहत बुधवार को फाल्कन-9 रॉकेट के माध्यम से फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से रवाना हुए थे।

शुक्ला की यह उड़ान ऐतिहासिक मानी जा रही है, क्योंकि यह 41 वर्षों के बाद किसी भारतीय की अंतरिक्ष यात्रा है। वे पहले भारतीय हैं जो आईएसएस की यात्रा कर रहे हैं। इससे पहले राकेश शर्मा 1984 में सोयूज यान से अंतरिक्ष गए थे।

एग्जिओम-4 मिशन में शुभांशु शुक्ला पायलट की भूमिका निभा रहे हैं। इसका अर्थ है कि वह ड्रैगन कैप्सूल की दिशा-निर्देशन, डॉकिंग और आपात स्थितियों में यान के संचालन की जिम्मेदारी संभालेंगे। इस मिशन में उन्हें सेकंड-इन-कमांड की भूमिका दी गई है। पेगी व्हिट्सन के बाद वे मिशन के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य हैं। शुक्ला आईएसएस में कुल 14 दिन बिताएंगे।

शुक्ला अपने साथ इसरो के उपकरण, वैज्ञानिक प्रयोगों से जुड़ी सामग्री, पौधों और सूक्ष्म जीवों को भी लेकर गए हैं। ये प्रयोग भारत के आगामी गगनयान मिशन के लिए उपयोगी जानकारी देंगे। उन्होंने अंतरिक्ष में प्रयोग के लिए भारतीय व्यंजन जैसे आम रस, मूंग दाल हलवा, गाजर का हलवा और चावल से बनी डिशेज भी साथ ली हैं। यह पहली बार है जब भारतीय भोजन अंतरिक्ष में भेजा गया है।

भारत को इस मिशन से क्या लाभ होगा:

  1. अंतरिक्ष में प्रयोग: शुक्ला आईएसएस पर कुल 7 वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे, जिनमें माइक्रोग्रैविटी में जीवन, जैविक विकास और पोषण से संबंधित अध्ययन शामिल हैं।
  2. फसल परीक्षण: छह प्रकार की फसलों के बीज माइक्रोग्रैविटी में अंकुरित किए जाएंगे ताकि अंतरिक्ष में खेती की संभावनाओं का मूल्यांकन किया जा सके।
  3. काई का उपयोग: माइक्रोएल्गी के उपयोग से भोजन, ईंधन और जीवन रक्षण के विकल्पों पर शोध किया जाएगा।
  4. चरम परिस्थितियों में जीवाश्म परीक्षण: टार्डीग्रेड जैसे जीवों पर शोध कर यह देखा जाएगा कि कौन से जीवाणु अंतरिक्ष की विषम परिस्थितियों में जीवित रह सकते हैं।
  5. मांसपेशी क्षय पर शोध: यह अध्ययन किया जाएगा कि शून्य गुरुत्वाकर्षण में मांसपेशियों में क्षय कैसे होता है और इससे कैसे बचा जा सकता है।
  6. नेत्र प्रभाव अध्ययन: आंखों की पुतलियों की गति, सजगता और तनाव में परिवर्तन का अध्ययन किया जाएगा।
  7. सायनोबैक्टीरिया के जरिए खाद्य और ऑक्सीजन उत्पादन: यूरिया और नाइट्रेट के साथ सायनोबैक्टीरिया के उपयोग से अंतरिक्ष में खाद्य और ऑक्सीजन उत्पादन की संभावनाओं पर शोध किया जाएगा।

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