कैसे सुधरे सरकारी मशीनरी का ढर्रा !

समाचार है कि सहारनपुर मंडल के बेसिक शिक्षा विभाग के सहायक निदेशक योगराज सिंह तथा मंडलीय समन्वयक नीरज प्रताप ने बुधवार 18 नवंबर को पुरकाज़ी विकास खंड के ग्राम गोधना, हरिनगर, फखरपुर के परिषदीय विद्यालयों का औचक निरीक्षण किया तो प्रातः 10 बजे भी स्कूलों पर ताले लटके मिले। सहायक निदेशक के आकास्मिक निरीक्षण की सूचना जब फैली तो स्कूलों के प्रधान अध्यापकों एवं अध्यापक हड़बड़ी में विद्यालय पहुंचने शुरू हुए किन्तु खुले हुए स्कूलों में अध्यापकों की पूरी उपस्तिथि नहीं मिली। विद्यार्थियों के लिए खेल का सामान, फर्नीचर और साफ-सफाई की स्थिति भी खराब मिली।

शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि गैरज़िम्मेदार शिक्षकों के विरुद्ध कार्यवाही होगी। यह कार्यवाही क्या है। विभाग अनुपस्थित शिक्षकों के गैरहाज़री के दिनों का वेतन काट लेता है। इससे बड़ी सजा सरकार के पास नहीं है। यह याद दिलाना आवश्यक है कि लगभग दो वर्ष पूर्व भी मुजफ्फरनगर के परिषदीय विद्यालयों का मंडलीय अधिकारी ने आकास्मिक निरीक्षण किया था। तब जिले के 22 विद्यालयों में शिक्षकों तथा छात्र-छात्राओं की अनुपस्थिति, गंदगी, प्रकाश व पेयजल तथा शौचालयों की कुव्यवस्था पाई गई थी। यदि ग़ैर ज़िम्मेदार और कर्तव्यपालन में विमुख शिक्षक वर्ग को दंडित किया जाता तो जैसा पुरकाज़ी ब्लॉक में पाया गया, वैसा न होता। वस्तुत: इस प्रकार के औचक निरीक्षण भी एक प्रकार की खाना पूरी है, वरना कौन सा अधिकारी है जो परिषदीय विद्यालयों की दुर्दशा से अवगत न हो।

सरकारी पाठशालाओं और राजकीय विभागों के विषय में एक धारणा बन गई है कि एक बार तैनाती होने के बाद कर्मचारी सरकारी दामाद बन जाता है। यदि वह लापरवाही करे, हेराफेरी करे, रिश्वत और सुविधाशुल्क ले तथा आमजनता के हितों की अवहेलना कर उससे बदसलूकी करे तो उसका कुछ बिगड़ना नहीं क्योंकि उनके पक्ष में इतने नियम कायदे है कि छोटी मोटी कार्यवाही होने के बाद भी उनका हित सुरक्षित है।

यह गौरतलब है कि कुछ समय पूर्व स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग के मंडलीय अधिकारी ने मुजफ्फरनगर के ग्रामीण अंचल के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का आकास्मिक निरीक्षण किया था जिसमें उप निदेशक को अस्पतालों में तैनात चिकित्सक ग़ैरहाजिर मिले थे। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में और भी अनेक अनियमितताएं मिली थी। उस औचक निरीक्षण का परिणाम क्या निकला? शून्य! आकास्मिक निरीक्षणों की कवायद के बाद पाठशालाओं, अस्पतालों या सरकारी विभागों की स्तिथि में सुधार क्यूं नहीं आता? इसका कड़वा उत्तर यह है कि किसी भी सरकारी मुलाजिम की जवाबदेही सुनिश्चित नहीं। भले ही सरकारी कर्मचारी को लोकसेवक कहा जाता हो, वे ब्रिटिश काल से लेकर आजतक खुद को हाकिम मानते हैं। ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक कमोबेश यही स्थिति है। जो अधिकारी लीक से हटकर कुछ अच्छा करना चाहते हैं वे इस भ्रष्टतंत्र में फिट नहीं होते। उन्हें या तो परम्परागत सिस्टम में खुद को ढालना पड़ता है या फिर राजकीय सेवा छोड़नी पड़ती है। किन्तु यह समस्या का समाधान तो नहीं हैं। भारत में कोई कमाल पाशा पैदा होगा, यह उम्मीद भी नहीं है। फिर भी हुकूमते वक़्त को व्यवस्था में सुधार के उपाय तो बरतने ही चाहिए।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here