‘देहात’ के संपादक-संस्थापक पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा के हजारों लोगों के साथ मित्रतापूर्ण मधुर सम्बन्ध रहे। इन सब के अलावा चार व्यक्ति ऐसे थे जिनके साथ उनके भ्रातवत सम्बन्ध थे जिनके बीच कोई औपचारिकता, दिखावा या किसी प्रकार का तकल्लुफ नहीं था। ये थे वीरेंद्र वर्मा, चौधरी नारायण सिंह, रामचंद्र विकल और इंजीनियर कन्हैया लाल जी। पिता जी के पश्चात इन सभी महानुभावों ने मुझे अपने पुत्र के समान ही स्नेह और मार्गदर्शन दिया।
आज आदरणीय विकल जी की 11वीं पुण्यतिथि पर उनकी याद में मेरा मन बड़ा व्यथित है। उनके सरल-सादे और आत्मीय व्यवहार के अनेक दृश्य मेरी आँखो के सामने तैर रहे हैं। मैंने उनका वह संघर्षपूर्ण जीवन भी देखा है जब उन्होंने किसान- मजदूर पार्टी की स्थापना की थी, और वह समय भी याद है जब वे पांच-पांच महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री थे। वे पूरा जीवन समभाव में जिये। विधायक, सांसद, मंत्री और राष्ट्रीय फार्म्स कारपोरेशन के चेयरमैन के रूप में मैंने सदा एक सीधे सादे विनम्र किसान को देखा है।
मुज़फ्फरनगर में जब आते तो उनके दो पक्के ठिकाने थे। वकील साहब रणधीर सिंह का मकान या ‘देहात भवन’। एक बार लम्बे दौरे से मुज़फ्फरनगर आये। दिन के साढ़े तीन बजे थे थके हुवे थे, दाढ़ी बढ़ी हुई। ‘देहात भवन’ पर पधारे विकल जी के साथ पिताश्री ने कहा- जल्दी हनीफ नाई को बुलाकर लाओ। शेव कराने के बाद नहाने जाते हुए बोले कि घर में जो है, वह खा लूंगा, यह वक्त फिर से दाल-सब्जी बनाने का नहीं है। फिर अचार, मठ्ठे से रोटी खाई। एक बार मैं उनके गाज़ियाबाद स्थित निवास पर पहुंचा तो खाना खा रहे थे। देखते ही बड़े प्रसन्न हुए और बोले- शांति (पुत्रवधु) वर्मा आया है, इसके लिए बाजरे और मक्का की रोटी बनाना। फिर प्रेम से काली उर्द की दाल से किसानों वाला खाना खिलाया। मैंने जब और जिस काम को कहा, तपाक से उठ कर चल देते थे। मैं महसूस कर रहा हूँ कि ऐसे संरक्षकों की सरपरस्ती से वंचित मनुष्य सचमुच में अनाथ हो जाता है।
पुण्यतिथि पर ‘देहात परिवार’ का शत-शत नमन!
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’