वट पूजा का पाखंड !

हमारे मकान के सामने मंदिर में कभी पीपल और वट (बड़) के दो विशालकाय वृक्ष थे जिनके साये में खेलकूद कर आज बुढ़ापा आ पहुंचा है। अफसोस यह है कि पीपल का वृक्ष सूख कर ठूँठ बन गया था जिसका कोई निशान अब मौजूद नहीं और उसका भाई यानी बरगद (वट) भी अंधभक्तों की मूर्खता से मरणासन्न स्थिति में पहुंच गया है। कभी इस विशाल वटवृक्ष की शाखाओं पर भांति-भांति के पक्षी बसेरा करते थे किंतु अब इसकी चोटी पर चीलों ने घोंसले बना लिए हैं।

बचपन से अब तक प्रत्येक वट अमावस्या को हम इस वट की क्रूर पिटाई और तुड़ाई का कारुणिक हश्य मन मसोस कर देखते आ रहे हैं।अमावस्या को लोग लाठी-डंडे लेकर बरगद पर पिल पड़ते हैं और उसे आहत कर टहनियां तोड़कर बड़े सुरमा की भांति प्रश्न होते हैं मानो उन्होंने बड़ा तीर मार दिया है।

प्राचीन वैदिक ग्रंथों, आरण्यकों, ब्राह्मण ग्रंथों तथा भारतीय संस्कृति के मूल स्रोत वेदों में वृक्षों, वनों, वनोषघियों का विशद वर्णन है। ऋषियों मनस्वियों द्वारा रचित आरण्यक वनों वृक्षों की महत्ता का बखान करते हैं। ऋग्वेद में कहा गया है – ‘हमारी पृथ्वी वृक्ष के उत्पन्न हुई है।’ अथर्ववेद में बिल्वपत्र (बेलपत्र) की तुलना परोपकारी पुरुष से की गई है- ‘ वैभद्रों बिल्वो महान् उदुम्बर:। वृहदारण्यक, श्वेताश्वरोयनिषद, पद्म पुराण, वाराह पुराण, पृथ्वी सूक्त आदि ग्रंथों में वृक्षों की महत्ता, उनके संरक्षण का विस्तार से उल्लेख है।

प्राचीन ग्रंथों में ‘अक्षय वट’ का उल्लेख है। ऐसा एक अक्षय वट शुकतीर्थ (मुजफ्फरनगर) में स्थित है जिसके नीचे शुकदेव मुनि ने राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाई थी। दूसरा अक्षयवट प्रयागराज में संगम के तट पर स्थित किले में है।

वृक्ष को ब्रह्मा व रुद्र का रूप बता उनको उच्च स्थान प्रदान किया। समुद्र मंथन में नाना फल देने वाला ‘कल्पवृक्ष’ देवताओं को प्राप्त हुआ। गीता में योगीराज कृष्ण ने कहा – ‘अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्’ – मैं ही औषधि हूं। वृक्षों में अवस्थ (पीपल हूं)। विश्वकर्मा प्रकाश में बाग रोपित करने तथा श्रेष्ठ वृक्षों का उल्लेख है। याज्ञवलक्य स्मृति में स्पष्ट कहा गया है कि हरे वृक्षों को काटना अपराध है। महाभारत में श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान वट वृक्ष की छाया में दिया था। गौतमबुद्ध को पीपल के नीचे बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। पृथ्वी सूक्त में स्पष्ट कहा गया है- ‘वृक्ष वर्षा लाते हैं। मिट्टी के कटाव को रोकते हैं। हमारी गन्दी सांसों को सोकते हैं। प्राणवायु प्रदान करते हैं।’

और मनुष्य क्या करता हैं? वृक्षों-वनों को उजाड़ता है। वृक्ष पूजा के झूठे आडम्बर करता है। लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए वृक्षारोपण के फोटो खिंचवाता है और पलट कर यह नहीं देखता कि रोपे गए पौधे को पशु चर गये या वे पानी न मिलने से सूख गए हैं।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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