आज भारतीय समाज में लगभग सभी समुदायों में वैवाहिक संबंधों के मूल्य गिरते जा रहे हैं। रिश्तों में अलगाव बढ़ रहा है, और लिव-इन रिलेशनशिप का चलन तेजी से बढ़ रहा है, जो समाज के लिए चिंता का विषय है। हम रोज़ाना समाचारों में पढ़ते हैं कि अनेक युवा प्रेम विवाह की कीमत अपनी जान देकर चुका रहे हैं। हमारा मानना है कि यदि विवाह सफल नहीं हो पा रहा है, तो हत्या जैसे गंभीर अपराध की बजाय तलाक लेना बेहतर विकल्प है, अन्यथा जीवन बर्बाद हो सकता है।
हिंदू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। हिंदू धर्मशास्त्र और भगवद गीता के अनुसार, सामाजिक रूप से स्वीकृत विवाह संस्था के बाहर किसी भी प्रकार का अवैध संबंध पाप माना गया है। इससे पारिवारिक मूल्य नष्ट हो जाते हैं और कुल का विनाश भी हो सकता है।
हिंदू धर्म विवाह की पवित्रता और रिश्तों के भीतर अनियंत्रित वासना के नकारात्मक परिणामों पर बल देता है। भगवद गीता पति-पत्नी के रूप में धार्मिक कर्तव्यों का पालन करने पर जोर देती है, जिसमें निष्ठा और समर्पण अनिवार्य माने गए हैं।
इस प्रकार, भगवद गीता धर्म के मार्ग पर चलने और अपने जीवन-साथी के प्रति वफादार रहने की शिक्षा देती है। वैवाहिक रिश्तों में भी पति-पत्नी का एक-दूसरे के प्रति निष्ठावान रहना और जीवन के हर उतार-चढ़ाव में साथ निभाना, रिश्ते को मजबूत बनाता है।
हिंदू धर्म में एक ही गोत्र में विवाह इसलिए वर्जित है क्योंकि वह एक ही वंश/कुल से संबंधित माने जाते हैं। ऐसी स्थिति में लड़का-लड़की भाई-बहन के समान माने जाते हैं, इसलिए एक ही गोत्र में विवाह अनुचित माना जाता है। हिंदू परंपरा में सामाजिक मान्यता के अनुसार, न केवल सगोत्र विवाह वर्जित है, बल्कि जहाँ एक ही गाँव में अलग-अलग गोत्र होते हुए भी लड़का-लड़की एक ही गाँव के हों, वहां भी उनका आपसी विवाह निषिद्ध होता है। गोत्र भारतीय जातीय व्यवस्था के भीतर एक वंशावली प्रणाली है, जो एक ही पूर्वज से उत्पन्न लोगों के बीच विवाह को प्रतिबंधित करती है।
अशोक बलियान, चेयरमैन, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन