उत्तर प्रदेश सरकार ने 2002 के एनकाउंटर मामले में पांच इंस्पेक्टरों समेत नौ पुलिसकर्मियों को अदालती प्रक्रिया में देरी और निष्क्रियता के लिए जिम्मेदार बताया है। इस मामले में शीर्ष कोर्ट यूपी सरकार पर सात लाख रुपये जुर्माना लगा चुकी है।
यह मामला 2002 में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में हुई कथित मुठभेड़ में एक व्यक्ति की मौत से संबंधित है। पिछले हफ्ते जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ के सामने यह केस सुनवाई के लिए आया था।
मृतक के पिता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए, शीर्ष कोर्ट ने इसे बहुत गंभीर मामला करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि जिस तरह की ढिलाई बरती गई उससे लगता है कि राज्य सरकार की मशीनरी अपने पुलिस अधिकारियों के बचाव या सुरक्षा में किस कदर जुटी रही।
यूपी सरकार द्वारा दायर स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रारंभिक जांच में नौ पुलिसकर्मी देरी और निष्क्रियता के लिए जिम्मेदार पाए गए हैं। इन्हें पहले ही कारण बताओ नोटिस जारी किया जा चुका है। उनके खिलाफ जांच तीन महीने में समाप्त होने की संभावना है। पीठ ने इसे संज्ञान में लिया और सुनवाई अगले साल फरवरी के पहले सप्ताह तक स्थगित कर दी।
यूपी सरकार ने स्टेटस रिपोर्ट में कहा है कि इस साल सितंबर में स्थानीय पुलिस की निष्क्रियता और अदालती प्रक्रियाओं के पालन को लेकर प्रारंभिक जांच शुरू की गई थी। यह पूरी हो गई है। मामले में देरी और निष्क्रियता के लिए प्रथम दृष्टया नौ पुलिसकर्मियों को जिम्मेदार पाया गया है। इनमें पांच इंस्पेक्टर, तीन हेड कांस्टेबल और एक कांस्टेबल है। इनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू की गई है। राज्य सरकार सभी अदालती आदेशों का पालन करने और मामले की सुनवाई तेजी से पूरी करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।
यूपी सरकार ने शीर्ष कोर्ट से कहा कि एक आरोपी का वेतन मई 2018 से ही रोक दिया गया था। इसी साल सितंबर से उसकी पेंशन भी रोक दी गई। सभी सेवानिवृत्त आरोपियों की पेंशन रोक दी गई है। दो सेवारत आरोपियों का वेतन भी रोक दिया गया है।
स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया है कि शीर्ष अदालत के 30 सितंबर के आदेश के अनुसार छह अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में सात लाख रुपये जमा कराए गए।