राम व कृष्ण के बिना भारत अधूरा है !

दशहरा। दस नकारात्मक शक्तियों को धारण करने वाले लंकापति रावण की दसों आसुरी प्रवृत्तियों का हरण करने का पर्व। यह असत्य पर सत्य का विजय पर्व है, दशहरा को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। जिसे भारतवासी सहस्रों वर्षों से मनाते आ रहे हैं। राम को करोड़ों भारतीय ईश्वरीय अवतार रूप में पूजते आ रहे हैं किंतु यह भी कटु सत्य है कि दुराग्रही प्रवृत्ति के अवसरवादी लोग अपनी राजनीति चमकाने को राम के नाम का दुरुपयोग करने में नहीं चूकते।

मायावती ने अपना राजनीतिक हित साधने के लिए रामभक्त जातियों को जूते मारने की हिदायत दी तो उनके गुरु ने अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर राम मंदिर बनाने के बजाय शौचालय बनाने की सलाह दी। आज बहिन जी वोटों के लिए इन्हीं ब्राह्मणों के चरण छूती घूम रही हैं। एक चिरकुट ने तो अपनी बिरादरी के वोट प्राप्त करने को अपने नाम के साथ रावण जोड़ दिया है ।

दक्षिण भारत में तो राम और उनके अनुयायियों के विरुद्ध दशकों से ज़हर उगला जा रहा है।

ई.वी.रामास्वामी ने वैदिक संस्कृति व राम-कृष्ण का विरोध करने को मद्रास प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़कर 1944 में ‘द्रविड़ कड़गम’ नाम का राजनीतिक दल बनाया, आज डी.एम.के व अन्ना डी.एम.के इसी के दुमछल्ले हैं। रामास्वामी न केवल हिंदू या वैदिक संस्कृति का विरोधी था बल्कि आर्यों को विदेशी हमलावर और द्रविडों को मूल भारतीय बताता था। उसने राम को कपटी, कृतघ्न व कामी बता कर अपमानित किया। इतना ही नहीं रामास्वामी ने राम,कृष्ण, गणेश आदि की मूर्तियों को तोड़कर उन्हें झाड़ू से पीटा। रामास्वामी ने हिंदी विरोध में हिंसक आंदोलन चलाया और राष्ट्रीय ध्वज तथा भारतीय संविधान की प्रतियां भी फूंकी थीं।

वोटों की खातिर कांग्रेस ने राम को नाटक का काल्पनिक पात्र बता दिया और रामेश्वरम के समीप श्रीराम द्वारा बनाये गए सेतुबंध के अस्तित्व को ही नकार दिया। स्मरणीय है कि तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट पर पंबन द्वीप और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिम तट पर मन्नार द्वीप के बीच श्रीराम के लंका विजय के समय यह सेतु (पुल) बनाया गया था जो 1480 के भयंकर तूफान में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। पुरातत्वविद् प्रो. माखनलाल, ओरेगन यूनिवर्सिटी की प्राध्यापक चेल्सी रोस के अध्ययन व सेटेलाइट फोटो से सिद्ध हुआ है कि 40 कि.मी. का मार्ग (पुल) मानव निर्मित है, प्राकृतिक सरंचना नहीं।

यूपीए सरकार के हिस्सेदार डी.एम.के के प्रतिनिधि डी.राजा के परिवहन जलयानों को सीधा रास्ता देने के लिए इस सेतुबंध को तोड़ने की योजना बनाई चूंकि डी.राजा के जलयानों को 80 किलोमीटर घूम कर आना पड़ता था। 2005 में नये सेतुसमुद्रम परियोजना का भारी विरोध हुआ और मामला मद्रास हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। कांग्रेस सरकार ने कोर्ट में दलील दी कि वह पुल प्राकृतिक संरचना है, राम द्वारा निर्मित पुल नहीं है। भारतीय पुरातत्व विभाग से भी ऐसा ही हलफनामा दिलाया गया। इतना ही नहीं तत्कालीन कांग्रेस सरकार के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि राम काल्पनिक पात्र हैं तो सेतुबंध कैसे बन सकता है?

कोई भी इन कांग्रेसियों से पूछ सकता है कि जिन्हें आप अपना बापू कहते हैं उनकी समाधि पर आपने हे राम क्यों लिखवाया है?

वास्तव में नेताओं की स्वार्थपरता के लपेटे में आकर कुछ तुच्छ मानसिकता के लोग श्रीराम पर अनर्गल प्रलाप करने लगते हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने 9 अक्टूबर को आकाश जाटव की जमानत की याचिका पर विचार करते समय जो टिप्पणी की है वह सम्पूर्ण भारतीय समाज के लिये विचारणीय है। न्यायमूर्ति श्री यादव ने कहा- ‘राम व कृष्ण के बिना भारत अधूरा है। कोई ईश्वर को माने या न माने, उसे लोगों की आस्था को चोट पहुंचाने का अधिकार नहीं है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं, प्रतिबंधित भी है। जिस देश में हम रहते हैं, उस देश के महापुरुषों और संस्कृति का सम्मान करना जरूरी है। हमारा संविधान बहुत उदार है किंतु मानव खोपड़ी हाथ में लेकर घूमने की इजाजत नहीं दी जा सकती। हमारे संविधान में भी राम-सीता के चित्र अंकित है। मुसलमानों में भी राम-कृष्ण के भक्त रहे हैं। रसखान, अमीर खुसरो, आलम शेख, वाजिद अली शाह, नजीर बनारसी आदि राम-कृष्ण के भक्त रहे हैं। राम-कृष्ण का अपमान पूरे देश का अपमान है।’

जस्टिस यादव की टिप्पणी काफ़ी विस्तृत है, यह तो सार-तत्व है। राम भारत की आत्मा है। सेक्युलरवाद या धर्मनिरपेक्षता के चक्कर में हम अपनी आत्मा को खुद से पृथक नहीं कर सकते। राम का नाम कभी बिसारा नहीं जा सकता। राम का तारक मंत्र कहता है-
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥

विष्णु सहस्रनाम के 1000 पाठ से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह पुण्य राम नाम के एक उच्चारण से प्राप्त हो जाता है।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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