ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, जो वर्तमान में एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर हैं, वैज्ञानिक अनुसंधान में जुटे हुए हैं। एक दिन के विश्राम के बाद उन्होंने और उनकी टीम ने माइक्रोग्रैविटी में हड्डियों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन शुरू किया है। इस प्रयोग का उद्देश्य यह समझना है कि गुरुत्वाकर्षण की अनुपस्थिति में मानव अस्थियाँ किस प्रकार प्रभावित होती हैं और यह जानकारी पृथ्वी पर ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियों के इलाज में कैसे सहायक हो सकती है।
विकिरण प्रभावों की निगरानी और सुरक्षा की तैयारी
मिशन के दसवें दिन, शुक्ला ने विकिरण के संपर्क से संबंधित एक अन्य परीक्षण में भाग लिया। इस अध्ययन का उद्देश्य लंबे अंतरिक्ष अभियानों के दौरान खतरनाक विकिरण से अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा को बेहतर बनाना है।
लखनऊ से अंतरिक्ष तक का सफर, कोड नाम ‘शक्स’
उत्तर प्रदेश के लखनऊ में जन्मे 39 वर्षीय शुभांशु शुक्ला इस 14 दिवसीय अंतरिक्ष अभियान में पायलट की भूमिका निभा रहे हैं। उनका मिशन कोड नाम ‘शक्स’ रखा गया है। इस मिशन की कमान अमेरिकी अनुभवी अंतरिक्ष यात्री पेगी व्हिटसन के पास है। उनके साथ हंगरी के टिबोर कापु और पोलैंड के स्लावोस्ज उजनान्स्की-विस्निएव्स्की भी शामिल हैं।
स्पेस माइक्रो एल्गी पर अध्ययन
शुक्ला ने ‘स्पेस माइक्रो एल्गी’ प्रयोग के लिए विशेष जैविक नमूने अंतरिक्ष में स्थापित किए हैं। ये सूक्ष्म जीव भविष्य में अंतरिक्ष में ऑक्सीजन, ईंधन और पोषण के स्रोत के रूप में इस्तेमाल हो सकते हैं। अध्ययन का उद्देश्य यह समझना है कि ये जीव अंतरिक्ष की कठिन परिस्थितियों में कैसे अनुकूल होते हैं।
‘बोन ऑन आईएसएस’ और डिजिटल मॉडलिंग
शुक्ला और उनकी टीम ‘बोन ऑन आईएसएस’ नामक अध्ययन में भाग ले रही है, जिसमें यह देखा जा रहा है कि अंतरिक्ष में हड्डियाँ कैसे क्षीण होती हैं और पृथ्वी पर लौटने के बाद किस प्रकार पुनः संरचित होती हैं। वैज्ञानिक इस डेटा के आधार पर ‘डिजिटल ट्विन’ यानी आभासी मॉडल विकसित कर रहे हैं, जो प्रत्येक अंतरिक्ष यात्री की जैविक प्रतिक्रिया का पूर्वानुमान लगाने में मदद करेगा। इससे भविष्य में मिशन के स्वास्थ्य जोखिमों का बेहतर आकलन हो सकेगा।
इसरो द्वारा सूक्ष्मजीवों पर आधारित प्रयोग की पुष्टि
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पुष्टि की है कि शुक्ला ने माइक्रोग्रैविटी में टार्डीग्रेड्स नामक सूक्ष्मजीवों पर आधारित प्रयोग भी पूरा किया है। यह प्रयोग इन जीवों की जीवन क्षमता, पुनर्जीवन और प्रजनन संबंधी व्यवहार को समझने के लिए किया गया। इसका उद्देश्य कठिन परिस्थितियों में जीवन के टिकाऊ मॉडल तैयार करना है, जो भविष्य में औषधीय शोध में भी सहायक हो सकते हैं।
अगले चरण में प्रमुख वैज्ञानिक से संवाद
मिशन के दौरान कुल 60 वैज्ञानिक प्रयोगों में से कई में शुक्ला सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। रविवार को वे एक्सिओम स्पेस की प्रमुख वैज्ञानिक लुसी लो से इन प्रयोगों की प्रगति को लेकर संवाद करेंगे। उन्होंने ‘मायोजेनेसिस’ नामक शोध में भी भाग लिया है, जो यह जांचता है कि मांसपेशियाँ माइक्रोग्रैविटी में किस प्रकार पुनर्निर्मित होती हैं।
भारतीय प्रयोग भी मिशन का हिस्सा
मिशन के तहत कुछ भारतीय अनुसंधान भी चल रहे हैं, जिनमें चयनित माइक्रो एल्गी और सायनोबैक्टीरिया की प्रजातियों पर काम हो रहा है। यह प्रयोग भविष्य में ऐसी प्रणाली विकसित करने में मदद करेगा जो अंतरिक्ष यात्रियों की पोषण जरूरतों को पूरा कर सके।
डिजिटल उपकरणों के साथ मानसिक प्रतिक्रिया का विश्लेषण
इसके अतिरिक्त, ‘इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले’ नामक अध्ययन में शुभांशु शुक्ला डिजिटल उपकरणों के उपयोग से जुड़ी मानसिक और तकनीकी प्रतिक्रियाओं की जांच कर रहे हैं। इसका मकसद यह समझना है कि अंतरिक्ष जैसे विशेष वातावरण में डिजिटल इंटरफेस से संवाद कैसे बेहतर किया जा सकता है।