करीब 20 दिन पहले केरल के तिरुवनंतपुरम में ब्रिटिश नौसेना के आधुनिक लड़ाकू विमान F-35 की आपात लैंडिंग हुई थी। इसे विश्व के सबसे उन्नत फाइटर जेट्स में गिना जाता है, जो हवा, ज़मीन और समुद्र – तीनों माध्यमों में लक्ष्य को भेदने में सक्षम है। साथ ही, यह रडार को चकमा देने वाली स्टील्थ तकनीक से भी लैस है।
हालांकि इतनी विशेषताओं के बावजूद, इसमें तकनीकी खामी आ गई और अब तक तमाम कोशिशों के बावजूद उसे दूर नहीं किया जा सका है। परिणामस्वरूप यह ‘आसमान का बादशाह’ फिलहाल केरल के ज़मीन पर खड़ा है। अब इसे टुकड़ों में वापस भेजे जाने की चर्चा ज़ोरों पर है।
इस स्थिति ने यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि भारत में इतने कुशल तकनीशियन मौजूद होने के बावजूद इस विमान की मरम्मत क्यों नहीं होने दी जा रही है?
भारत को मरम्मत की अनुमति क्यों नहीं दी गई?
इसका प्रमुख कारण है तकनीकी गोपनीयता। अमेरिका में निर्मित F-35 में अत्यधिक संवेदनशील और उन्नत तकनीक का इस्तेमाल हुआ है, जिसे अमेरिका और उसके सहयोगी देश किसी तीसरे पक्ष के साथ साझा नहीं करना चाहते। यही वजह है कि अमेरिका और ब्रिटेन, दोनों इस बात पर अड़े हैं कि इस विमान की मरम्मत केवल अधिकृत सुविधाओं या अमेरिकी-ब्रिटिश तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा ही की जाए।
इस विमान में अत्याधुनिक स्टील्थ टेक्नोलॉजी, सेंसर फ्यूजन, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम और विशेष कंपोज़िट मटीरियल्स का उपयोग होता है। अमेरिका को आशंका है कि यदि भारत इस विमान को खोलकर मरम्मत करता है, तो उसे इन संवेदनशील प्रणालियों तक पहुंच मिल सकती है।
सॉफ्टवेयर और कोड सिक्योरिटी की चिंता
F-35 विमान उन्नत सॉफ्टवेयर और एन्क्रिप्टेड कंट्रोल सिस्टम पर आधारित है। अमेरिका और ब्रिटेन को यह डर है कि यदि भारत को मरम्मत की अनुमति दी जाती है, तो उसे इन सिस्टम्स के भीतर तक पहुंच मिल सकती है, जिससे कोड सिक्योरिटी को खतरा पैदा हो सकता है।
सप्लाई चेन और नियंत्रण की रणनीति
F-35 के संचालन और रखरखाव के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तय प्रोटोकॉल हैं, जिनके तहत किसी भी देश में यदि इस विमान में खराबी आती है, तो केवल अधिकृत केंद्र या अमेरिका-ब्रिटेन की विशेष तकनीकी टीमें ही उसकी मरम्मत कर सकती हैं। इस व्यवस्था को सप्लाई चेन और कंट्रोल लॉजिक कहा जाता है। यही कारण है कि भारत जैसे तकनीकी रूप से सक्षम देश को भी इसमें हस्तक्षेप की अनुमति नहीं मिलती।