आपातकाल की 50वीं बरसी के मौके पर विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कांग्रेस और गांधी परिवार पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि वर्ष 1975 में लोकतंत्र का गला इसलिए घोंटा गया, क्योंकि एक परिवार के स्वार्थ को राष्ट्रहित से ऊपर रखा गया। उन्होंने कहा कि उस दौर में देश भय और दमन के माहौल में जी रहा था, आमजन की आवाज दबा दी गई थी और सत्ता का लाभ केवल एक परिवार तक सीमित था।
जयशंकर ने यह भी कहा कि आज जो लोग संविधान की बातें करते हैं, वही कभी उस पर आघात करने के लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने आरोप लगाया कि लोकतंत्र की दुहाई देने वाले लोग आज तक आपातकाल के लिए माफी नहीं मांग पाए हैं।
विदेशों में भी भारत की साख को लगा था धक्का
विदेश मंत्री ने याद किया कि जब वे भारतीय विदेश सेवा में नए थे, तो वरिष्ठ अधिकारियों से उन्हें यह जानने को मिला कि आपातकाल के चलते दुनियाभर में भारत की लोकतांत्रिक छवि को नुकसान पहुंचा। “मदर ऑफ डेमोक्रेसी” की पहचान को गहरा आघात लगा और वैश्विक मंचों पर भारतीय राजनयिकों के लिए स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण हो गई थी।
दो वर्षों में संविधान के साथ हुआ खिलवाड़
जयशंकर ने आपातकाल के दौरान किए गए संवैधानिक संशोधनों का उल्लेख करते हुए कहा कि उस समय सिर्फ दो सालों में पाँच बार संविधान संशोधित किया गया और 48 अध्यादेश लाए गए। इनमें से 38वें संशोधन ने आपातकाल को अदालत में चुनौती देने का अधिकार खत्म कर दिया और 42वें संशोधन ने मौलिक अधिकारों और न्यायपालिका की स्वायत्तता को कमजोर किया।
भ्रष्टाचार और राजनीतिक स्वार्थ आपातकाल की वजह
उन्होंने यह भी बताया कि 1971 के चुनावी विजय के कुछ वर्षों बाद ही सरकार की लोकप्रियता गिरने लगी थी। भ्रष्टाचार और महंगाई चरम पर थी, गुजरात और बिहार में छात्रों के नेतृत्व में जनआंदोलन तेज हो रहे थे। साथ ही सत्ता की मजबूती बनाए रखने के लिए तत्कालीन सरकार ने आपातकाल लागू किया।
‘किस्सा कुर्सी का’ से मिली झलक
जयशंकर ने इमरजेंसी काल के भयावह माहौल को रेखांकित करते हुए कहा कि उस दौर में राजनीतिक असहमति को कुचला गया, नेता बिना किसी मुकदमे के जेल में डाल दिए गए और लोगों को यह तक नहीं पता था कि वे कब रिहा होंगे। उन्होंने फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ का हवाला देते हुए कहा कि इसमें उस समय की सत्ता की असलियत छिपी हुई है।
अब देश सर्वोपरि: जयशंकर
अपने संबोधन के अंत में जयशंकर ने कहा कि आज का भारत पहले राष्ट्र को प्राथमिकता देता है, न कि किसी परिवार को। उन्होंने कहा कि जब विभिन्न दलों के प्रतिनिधि विदेशों में भारत का पक्ष एकजुटता से रखते हैं और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर वैश्विक मंचों पर बोलते हैं, तब असली लोकतंत्र और राष्ट्रभक्ति दिखाई देती है।