विवादों में घिरी पतंजलि: विज्ञापनों, दावों और बयानों पर कोर्ट ने क्या कहा?

पतंजलि आयुर्वेद एक बार फिर कानूनी विवादों में घिर गया है। इस बार मामला च्यवनप्राश से जुड़ा है, जहां एक विज्ञापन को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए अंतरिम रोक लगा दी है। डाबर इंडिया की ओर से दाखिल याचिका में आरोप लगाया गया था कि पतंजलि के विज्ञापन में डाबर के च्यवनप्राश को गुणवत्ता में कमतर दर्शाने की कोशिश की गई है।

याचिका में कहा गया कि पतंजलि का ‘स्पेशल च्यवनप्राश’ न केवल डाबर बल्कि च्यवनप्राश की पूरी श्रेणी का अपमान करता है। विज्ञापन में यह दावा किया गया कि “किसी अन्य निर्माता को च्यवनप्राश बनाना नहीं आता”, जिसे याचिकाकर्ता ने भ्रामक और अपमानजनक बताया।

कोर्ट का सख्त रुख

3 जुलाई को सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मिनी पुष्कर्णा ने टिप्पणी की कि व्यापारिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ऐसी औषधीय दवाओं की झूठी श्रेष्ठता का प्रचार स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस प्रकार की भ्रामक जानकारी से उपभोक्ताओं को भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए।

पतंजलि और विवाद: एक नजर

यह पहला अवसर नहीं है जब पतंजलि और योगगुरु बाबा रामदेव को कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा हो। बीते वर्षों में कंपनी और उसके प्रमुख अधिकारियों के खिलाफ कई बार अदालतों में सवाल उठ चुके हैं:

1. लाल मिर्च पाउडर में कीटनाशक का मामला

इस साल की शुरुआत में FSSAI ने पतंजलि के एक विशेष बैच के लाल मिर्च पाउडर को गुणवत्ता मानकों पर खरा न उतरने पर बाजार से हटाने का निर्देश दिया था। जांच में पाया गया कि नमूनों में कीटनाशक अवशेष तय सीमा से अधिक थे, जिसके बाद 4 टन से अधिक पाउडर वापस मंगाया गया।

2. केरल में भ्रामक स्वास्थ्य दावे पर कार्रवाई

फरवरी 2024 में केरल के औषधि नियंत्रक विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया कि पतंजलि की ओर से औषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 का उल्लंघन हुआ है। पतंजलि के खिलाफ केरल में 31 अभियोजन दर्ज हैं और कंपनी के सीईओ आचार्य बालकृष्ण और बाबा रामदेव के खिलाफ समन भी जारी हुआ था।

3. ‘शरबत जिहाद’ बयान पर कोर्ट की नाराजगी

3 अप्रैल 2025 को बाबा रामदेव ने शरबत के प्रचार के दौरान एक बयान दिया था, जिसे हमदर्द कंपनी से जोड़कर देखा गया। इसके खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई, जिसमें इसे धार्मिक भेदभाव फैलाने वाला बताया गया। कोर्ट ने रामदेव की टिप्पणी को “प्रथम दृष्टया अवमानना” मानते हुए उन्हें भविष्य में ऐसी टिप्पणियों से बचने की चेतावनी दी।

4. कोरोना की दवा ‘कोरोनिल’ को लेकर विवाद

कोविड-19 महामारी के दौरान पतंजलि ने कोरोनिल नामक दवा को वायरस के इलाज में प्रभावी बताते हुए प्रचारित किया था। इस पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने कड़ा विरोध जताते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। मामले में बाद में सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को बिना शर्त माफी मांगने और अखबारों में सार्वजनिक रूप से माफीनामा प्रकाशित करने का निर्देश दिया था।

5. अस्थमा और डायबिटीज के इलाज के झूठे दावों पर आपत्ति

पतंजलि के विज्ञापनों में विभिन्न गंभीर बीमारियों जैसे अस्थमा, मोटापा और डायबिटीज को पूरी तरह ठीक करने का दावा किया गया, जिसे लेकर IMA और अन्य संस्थाओं ने शिकायत दर्ज कराई। इन मामलों में भी कंपनी पर कानूनों के उल्लंघन के आरोप लगे और न्यायिक कार्रवाई की गई।

निष्कर्ष:
पतंजलि आयुर्वेद और बाबा रामदेव द्वारा किए गए दावों और प्रचार अभियानों को लेकर बार-बार अदालतों और नियामक संस्थाओं का सामना करना पड़ रहा है। ताजा मामला च्यवनप्राश के विज्ञापन से जुड़ा है, जिसने एक बार फिर कंपनी को कटघरे में खड़ा कर दिया है।

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