सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि किसी कानूनी मामले में मुवक्किल को सलाह देने वाले वकील को पुलिस या जांच एजेंसियों द्वारा सीधे समन भेजना उचित नहीं है। अदालत ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई न केवल अधिवक्ता पेशे की स्वतंत्रता को कमजोर करती है, बल्कि यह न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता और स्वायत्तता पर भी खतरा बन सकती है।
वकील की याचिका पर सुनवाई
न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने एक अधिवक्ता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें मार्च 2025 में एक वकील को उसके मुवक्किल को दी गई कानूनी सलाह के संबंध में पुलिस द्वारा जारी नोटिस को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।
जांच एजेंसी द्वारा समन पर सवाल
पीठ ने कहा कि यदि किसी अधिवक्ता की भूमिका केवल सलाह देने तक सीमित है, तो क्या उसे जांच के लिए सीधे बुलाना न्यायसंगत है? अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि अगर किसी मामले में वकील की भूमिका इससे आगे तक जाती है, तो क्या फिर भी सीधे समन भेजा जा सकता है, या फिर इसके लिए न्यायिक निगरानी आवश्यक होनी चाहिए।
न्यायिक स्वतंत्रता पर असर
न्यायाधीशों ने कहा कि वकील न्यायिक प्रक्रिया का एक अहम हिस्सा हैं और उन्हें सीधे समन करने की अनुमति देना पूरी प्रणाली की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर सकता है। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, ताकि कानूनी पेशेवरों की गरिमा और स्वतंत्रता सुरक्षित रह सके।
गुजरात सरकार से मांगा जवाब
अदालत ने फिलहाल संबंधित अधिवक्ता को समन न भेजने का निर्देश दिया है और पुलिस द्वारा जारी नोटिस के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने को कहा है।