सावन माह में होने वाली कांवड़ यात्रा को लेकर देश की सियासत एक बार फिर गर्मा गई है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एसटी हसन की टिप्पणियों को लेकर भाजपा ने तीखा पलटवार किया है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने दोनों नेताओं पर “हिंदू विरोधी मानसिकता” को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।
दिग्विजय सिंह और एसटी हसन के बयान
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि यदि राज्य सरकारें कांवड़ यात्रा में सुविधाएं देती हैं तो यह गलत नहीं, लेकिन जब इस यात्रा का उपयोग नफरत फैलाने के लिए किया जाता है, तो यह चिंता का विषय बन जाता है। उनका कहना था कि किसी भी सभ्य समाज में घृणा फैलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
वहीं समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद एसटी हसन ने दावा किया कि उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा मार्ग पर कुछ संगठनों द्वारा दुकानदारों और होटल कर्मचारियों से उनकी धार्मिक पहचान पूछी जा रही है। उन्होंने इन घटनाओं की तुलना आतंकवाद से करते हुए कहा कि नाम और धर्म पूछना, या कपड़े उतरवाकर पहचान की मांग करना किसी भी रूप में उचित नहीं है। उन्होंने इसे “धर्म के आधार पर आतंक फैलाने” की प्रवृत्ति बताया।
भाजपा का पलटवार
भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने इन बयानों की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि यह टिप्पणियां कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की एक जैसी सोच को दर्शाती हैं। उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर भी निशाना साधते हुए कहा कि वे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ‘हिंदुत्व विरोधी विचारों’ का समर्थन करते हैं, और देश में उन्हीं विचारों की पुनरावृत्ति इन नेताओं के बयानों में झलकती है।
त्रिवेदी ने कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के पुराने बयानों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने कभी जाकिर नाइक को “शांति दूत”, ओसामा बिन लादेन को “ओसामा जी” और हाफिज सईद को “हाफिज साहब” कहा था, लेकिन उन्हें कांवड़ यात्रा में ही सांप्रदायिकता दिखाई देती है।
सरकार की भूमिका पर सवाल
एसटी हसन ने उत्तराखंड सरकार पर आरोप लगाया कि वह इन घटनाओं पर चुप्पी साधे बैठी है और कहीं-न-कहीं इस प्रकार की गतिविधियों को मौन समर्थन दे रही है। उन्होंने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और ऐसी घटनाएं संविधान की भावना के विरुद्ध हैं। उन्होंने सरकार से दोषियों पर त्वरित कार्रवाई की मांग की है।
हर साल उठता है विवाद
गौरतलब है कि कांवड़ यात्रा को लेकर हर वर्ष राजनीतिक बयानबाज़ी तेज़ हो जाती है। भाजपा और हिंदू संगठनों के लिए जहां यह धार्मिक आस्था का प्रतीक है, वहीं विपक्षी दल इसमें राजनीतिक लाभ की मंशा देखते हैं। इस बार भी वही स्थिति दोहराई जाती प्रतीत हो रही है।