परिसीमन की तैयारी तेज, 2029 से पहले लागू होगा महिला आरक्षण

देश में साल 2027 में प्रस्तावित जनगणना के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की सीटों के नए सिरे से परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होने की संभावना है। यह कदम न केवल संसद और विधानसभा सीटों की संभावित बढ़ोतरी का मार्ग प्रशस्त करेगा, बल्कि महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों को लागू करने की दिशा में भी निर्णायक साबित होगा।

गौरतलब है कि 2023 में संसद ने ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ पारित किया था, जिसके तहत महिलाओं को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33% आरक्षण देने की व्यवस्था की गई है। हालांकि, इस कानून का क्रियान्वयन जनगणना और परिसीमन के बाद ही किया जा सकता है। केंद्र सरकार की योजना है कि यह पूरी प्रक्रिया 2029 के आम चुनाव से पहले पूरी कर ली जाए, ताकि उसी चुनाव में महिला आरक्षण को प्रभावी रूप से लागू किया जा सके।

जनगणना में हुआ विलंब, लेकिन होगी पूरी तरह डिजिटल

कोविड-19 महामारी के चलते 2021 की जनगणना समय पर नहीं हो सकी और अब आंकड़ों के आने में करीब तीन साल की देरी हो रही है। ऐसी स्थिति में, विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जरूरी हुआ तो 2011 की जनगणना के आधार पर भी परिसीमन किया जा सकता है।

इस बार की जनगणना पूरी तरह डिजिटल स्वरूप में की जाएगी, जिससे आंकड़े पहले की तुलना में कहीं अधिक तेजी से जुटाए जा सकेंगे। उम्मीद है कि क्षेत्रीय आंकड़े एक से डेढ़ साल के भीतर उपलब्ध हो जाएंगे, जिससे परिसीमन आयोग को अपनी प्रक्रिया समयबद्ध तरीके से पूरी करने में सहायता मिलेगी।

2008 के बाद अब बड़ा बदलाव संभव

भारत में पिछली बार व्यापक रूप से परिसीमन वर्ष 2008 में हुआ था, जो 2001 की जनगणना पर आधारित था। हालांकि, उस समय लोकसभा और विधानसभा की सीटों की कुल संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया था। इसकी वजह थी 2002 में हुआ 84वां संविधान संशोधन, जिसके तहत यह तय किया गया था कि 2026 तक संसद और विधानसभाओं की सीटों में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा।

लेकिन इस संशोधन में यह भी प्रावधान रखा गया था कि 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना के आधार पर सीटों की संख्या में संशोधन किया जा सकेगा।

दक्षिणी राज्यों की चिंता पर केंद्र का आश्वासन

परिसीमन को लेकर दक्षिण भारतीय राज्यों की ओर से चिंता जताई गई है, क्योंकि उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया है। इससे आशंका है कि उनकी संसदीय सीटों की संख्या में कमी हो सकती है।

हालांकि, केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि संवैधानिक सीमाओं के भीतर रहते हुए किसी भी राज्य के प्रतिनिधित्व को घटने नहीं दिया जाएगा। जैसा कि पूर्वोत्तर राज्यों और अंडमान-निकोबार जैसे क्षेत्रों में कम जनसंख्या के बावजूद प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया है, वैसे ही संतुलन दक्षिण भारत के लिए भी स्थापित किया जाएगा।

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