मद्रास हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि विवाहित महिलाओं को पासपोर्ट बनवाने के लिए अपने पति की अनुमति या हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं है। न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश ने यह टिप्पणी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दी, जिसमें याचिकाकर्ता ने पति के हस्ताक्षर के बिना पासपोर्ट जारी करने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता रेवती ने अदालत में बताया कि उनकी शादी 2023 में हुई थी, लेकिन वैवाहिक मतभेद के चलते उनके पति ने तलाक की अर्जी दायर कर रखी है, जो अदालत में लंबित है। अप्रैल 2024 में उन्होंने क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय (आरपीओ) में नया पासपोर्ट बनवाने के लिए आवेदन किया था। हालांकि, आरपीओ ने फॉर्म-जे में पति के हस्ताक्षर की मांग करते हुए प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया।
आरपीओ की इस शर्त को चुनौती देते हुए रेवती ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति वेंकटेश ने स्पष्ट किया कि किसी महिला के पासपोर्ट आवेदन को स्वतंत्र रूप से निपटाया जाना चाहिए और वैवाहिक स्थिति या पति की सहमति को इसके लिए बाधा नहीं बनाया जा सकता।
‘महिलाएं किसी की संपत्ति नहीं’
अदालत ने आरपीओ की शर्तों की आलोचना करते हुए कहा कि यह सोच अब भी समाज में गहराई से मौजूद है कि विवाहित महिलाएं पति की संपत्ति हैं। न्यायमूर्ति ने टिप्पणी की कि पासपोर्ट जारी करने की प्रक्रिया में पति की सहमति की मांग करना न केवल महिला के अधिकारों का हनन है, बल्कि यह महिला सशक्तिकरण की राह में भी बाधा है।
उन्होंने यह भी कहा कि जब पति-पत्नी के संबंध पहले से ही तनावपूर्ण हों, ऐसे में पति के हस्ताक्षर की शर्त लगाना याचिकाकर्ता के लिए असंभव स्थिति उत्पन्न करता है। जज ने स्पष्ट किया कि विवाह के बाद भी महिला की अपनी स्वतंत्र पहचान बनी रहती है और उसे किसी की अनुमति की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
फैसला महिला अधिकारों को देगा बल
अदालत ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता के आवेदन को पति के हस्ताक्षर के बिना ही प्रक्रिया में लाए और तय समय में पासपोर्ट जारी करे। यह फैसला महिला अधिकारों की दृष्टि से एक अहम कदम माना जा रहा है।