महा प्रतापी पंजाब नरेश महाराजा रणजीत सिंह की वीरता और पुरुषार्थ की सच्ची कहानियां विश्व इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखी हुई है। इतिहासकार कनिंघम ने लिखा है कि महाराजा रणजीत सिंह सभी धर्मों का आदर करने वाले कुशल शासक थे, जिनके राज्य में हिंदू, सिख, मुस्लिम, इसाई आदि सभी को सम्मान और सुरक्षा प्राप्त थी।
उन्होंने अपने राज्य में मृत्युदंड पर प्रतिबंध लगा दिया था और सरकारी ख़जाने का 50 प्रतिशत हिस्सा जनकल्याण के कार्यों में व्यय करते थे। स्वयं निरक्षर होते हुए भी शिक्षा के प्रसार पर बल दिया। सिख धर्मावलंबी होने के बावजूद किसी को जबरन सिख नहीं बनाने दिया, जैसा कि उनके समकालीन मुस्लिम शासक जबरिया इस्लाम धर्म अपनाने को बाध्य करते थे। उनकी खालसा सेना में हिंदू, सिख,मुस्लिम व यूरोपियन सैनिक व सेनानायक होते थे। महाराजा ने जिन राज्यों को फतह किया उनके पूर्व शासकों के भरण-पोषण व सम्मान का पूरा ध्यान रखा। अफगानिस्तान के पराजित शासक शाहशुजा को अपने पराक्रम के बल पर जेल से मुक्त कराया। अपने राज्य में बसने वाले हिंदुओं व सिखों को जजिया कर से मुक्त कराया। शाहशुजा की मुक्ति के बाद उसकी पत्नी ने जो कोह-ए-नूर हीरा उन्हें कृतज्ञता स्वरूप भेंट किया, उसे भगवान जगन्नाथ के मंदिर को अर्पित करना चाहते थे कि 27 जून 1834 में उनका निधन हो गया। श्री हरिमंदर साहिब का पुनरूत्थान कराने के साथ साथ महाराजा ने तख्त पटना साहिब और तख्त हुजूर साहिब गुरुद्वारों का निर्माण कराया। काशी (वाराणसी) काशी विश्वनाथ मंदिर को 47 लाख रूपये और एक टन सोना दान दिया।
महाराजा रणजीत सिंह की धर्मनिरपेक्षता का एक स्वर्णिम अध्याय इतिहास के पन्नो में अंकित है। लाहौर के एक मुस्लिम ख़ुशनवीस (सुंदर लेख लिखने वाला) ने सोने और चांदी की रोशनाई में बहुत खूबसूरत कुरान लिखा। उसमें उस कातिब का बहुत समय और परिश्रम लगा था। वह इस नायाब कुरान को लेकर अनेक मुस्लिम शासकों व नवाबों के पास गया। सबने उसकी प्रशंसा तो की लेकिन उज़रत (मूल्य) सुनकर ख़रीदने से इंकार कर दिया। किसी की सलाह पर वह महाराजा के दरबार में पहुंचा। उन्होंने कुरान हाथ में लेकर देखा, फिर माथे से लगाया और कहा- इसे हमारे संग्रहालय में आदर के साथ विराजा जाये। हुक्म दिया कि ऐसा खूबसूरत कुरान लिखने वाले कातिब को मुंह एलमांगी कीमत दिया जाए। विभाजन के समय तक यह कुरान लाहौर के किले में सुरक्षित था। आज कहां है, पता नहीं।
महाराजा रणजीत सिंह अपने पराक्रम, दूरदर्शिता और प्रजावत्सलता के कारण सुपर हीरो बन गए थे। उनकी गौरवगाथायें, हिंदू-मुस्लिम, सिखों के घरों में आदर से सुनाई जाती थीं।
बहुत अफसोस एवं पीड़ा का विषय है कि पाकिस्तान में भारतीय उप महाद्वीप के इस वीर पुरुष की जो सही अर्थों में एक महान शासक था, जिसे हर कौम का शख्स शेर-ए-पंजाब कह कर आदर करता था, पाकिस्तान में उनकी प्रतिमा को बार-बार अपमानित किया जा रहा है। यह सिख या जाट वीर कि नहीं, हिन्दुस्तान में बसने वाली हर कौम का अपमान है। पाकिस्तानी शासकों को इस गुस्ताख़ी के लिए माफी मांगनी चाहिये और दोषियों को सख्त सजा देनी चाहिए। जो कलंक इमरान खान ने अपने माथे पर लगाया है, उसे वे जल्द से जल्द धो लें।
गोविंद वर्मा
संपादक देहात