जम्मू-कश्मीर चुनाव: केंद्रीय मंत्री राज्य का दौरा कर पीएम को सौपेंगे रिपोर्ट

जम्मू-कश्मीर में तीसरे चरण के तहत केंद्रीय मंत्रियों के दौर शुरू हो गए हैं। शुक्रवार को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ अनंतनाग जिले का दौरा कर रहे हैं। उनसे पहले केंद्रीय बिजली तथा भारी उद्योग राज्यमंत्री कृष्णपाल गुर्जर, सांबा के दो दिवसीय दौरे पर पहुंचे थे। इसके बाद मोदी मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्री भी जम्मू-कश्मीर का दौरा करेंगे। इनमें केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, पीयूष गोयल, गिरिराज सिंह, नरेंद्र सिंह तोमर, धमेंद्र प्रधान, किरण रिजिजू, भूपेंद्र यादव, अनुराग ठाकुर, जी किशन रेड्डी और जन. वीके सिंह सहित केंद्र सरकार के तमाम मंत्री जून में जम्मू कश्मीर के विभिन्न हिस्सों का दौरा कर वहां की प्रगति जांचेंगे। इसके बाद वह रिपोर्ट पीएमओ और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सौंपी जाएगी।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मोदी सरकार के मंत्रियों के दौरे जम्मू-कश्मीर में ‘भगवा’ लहराने में मददगार साबित होंगे, ये तो वक्त ही बताएगा। 70 केंद्रीय मंत्रियों की सकारात्मक रिपोर्ट के बाद अमित शाह, जम्मू-कश्मीर में चुनावी बिगुल फूंक सकते हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा मंत्रियों के दौरे तय किए गए हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह भी शुरुआती दौर में यानी 30 व 31 मई को बडगाम जिले में पहुंचेंगे। इसके बाद केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल 31 मई व एक जून को जम्मू जिले में रहेंगे।

मंत्रियों के दौरे की 2020 से हुई थी शुरुआत

केंद्रीय मंत्री अपने दौरे के दौरान स्थानीय पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों से भी मुलाकात करेंगे। इतना ही नहीं, मंत्रियों का विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से भी मिलने का कार्यक्रत तय किया गया है। नई योजनाओं का शुभारंभ होगा और पुराने कार्यों की प्रगति रिपोर्ट ली जाएगी। योजनाओं को लेकर जनता क्या कहती है, इस बाबत लोगों से बातचीत होगी। दिसंबर 2021 में राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर को 31,000 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिले हैं। उसमें से 28,400 करोड़ रुपये की केंद्रीय क्षेत्र की नई योजना को अधिसूचित किया गया है। इस योजना से करीब साढ़े चार लाख लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है।

केंद्र सरकार ने 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 की समाप्ति के बाद पहली बार 2020 में मंत्रियों को यहां भेजना शुरू किया था। उस दौरान करीब दो दर्जन केंद्रीय मंत्री अलग-अलग जगहों पर पहुंचे थे। उसके बाद 36 मंत्री जम्मू-कश्मीर पहुंचे थे। गत वर्ष सितंबर-अक्तूबर में सभी केंद्रीय मंत्रियों ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया था। जम्मू कश्मीर के राजनीतिक मामलों के जानकार कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) का कहना है कि इन दौरों का मकसद यहां होने वाले विधानसभा चुनाव हैं। भाजपा की मंशा है कि इन मंत्रियों के जरिए राज्य में चुनाव का माहौल तैयार किया जाए। अब परिसीमन आयोग की रिपोर्ट भी आ चुकी है। ऐसे में कभी भी चुनाव की घोषणा की जा सकती है। स्थानीय स्तर पर बहुत काम होने बाकी हैं। विज्ञापन में जो दिखाया जाता है, हो सकता है कि वह ग्राउंड पर न हो। राज्य में नौकरियों को लेकर, खासतौर से जम्मू के लोगों में गुस्सा व्याप्त है। अनुच्छेद 370 समाप्त करने के बाद नए डोमिसाइल लॉ का फायदा नहीं हुआ है। इससे लोगों को रोजगार मिलने में दिक्कत हो रही है।

योजनाओं की लेंगे ग्राउंड रिपोर्ट

अभी हाल ही में जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने रहबर-ए-खेल, रहबर-ए-जंगलात और नेहरू युवा क्लब योजनाओं के तहत काम कर रहे कर्मचारियों को नोटिस प्रदान किया था कि ये सभी पद जम्मू-कश्मीर सेवा चयन बोर्ड द्वारा भरे जाएंगे। कर्मचारियों ने जम्मू में भाजपा मुख्यालय पर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। राजनीतिक दल भी कर्मियों के साथ आ गए। नतीजा, प्रशासन को स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा। उसमें कहा गया कि रहबर-ए-खेल, रहबर-ए-जंगलात और नेहरू युवा क्लब योजनाओं के तहत काम कर रहे कर्मचारियों को हटाने की जम्मू-कश्मीर सरकार की कोई योजना नहीं है। जम्मू कश्मीर इस तरह के फैसले लेता रहा तो भाजपा को चुनाव में दिक्कत हो सकती है। इस तरह की दर्जनों स्कीम हैं, जिनकी कभी ग्राउंड रिपोर्ट नहीं ली गई। बतौर कैप्टन अनिल गौर, योजना के लागू होने और उसके क्रियान्वयन में अंतर होता है। अब केंद्रीय मंत्रियों के सामने लोग इस तरह की बातें रखेंगे। पिछली बार के दौरों का क्या फायदा हुआ है। कुछ नहीं हुआ, सिवाय सरकारी खर्च बढ़ाने के। भाजपा, प्रचार के लिए केंद्रीय मंत्रियों को यहां ला रही है।

जम्मू में जितने भी विकास के काम हैं, उनमें से ज्यादातर बाहरी लोगों को दिए जा रहे हैं। जैसे सिविल, मैकेनिकल, रोड या टनल आदि कार्यों का टेंडर स्थानीय लोगों को नहीं मिल पा रहा। इसकी वजह, टेंडर में आगे आने के लिए जो टर्न ओवर निर्धारित किया गया है, उसमें यहां के लोग सफल नहीं हो पाते। बाहरी कंपनी आती है, स्थानीय लोगों को कम दाम में काम दे देती है। जम्मू-कश्मीर में आजकल यही सबलेट सिस्टम ‘उपपट्टे पर देना’ चल रहा है। वेब के जरिए टेंडर भरे जाते हैं। जैसे उदाहरण के तौर पर हाल ही में शराब के ठेकों का टेंडर हुआ था। उसे बाहर के लोगों ने ले लिया। बाहर के लोग स्थानीय मुखौटों के जरिए कारोबार कर रहे हैं। सरकार को इन सब बातों पर गौर करना होगा। नए परिसीमन से न तो हिंदू खुश हैं और न ही मुस्लिम। सीटों की घटत बढ़त से कुछ ज्यादा लाभ नहीं होगा। बतौर अनिल गौर, केंद्रीय मंत्रियों को गहराई से योजनाओं की प्रगति रिपोर्ट तैयार करनी होगी। जो प्रोजेक्ट घोषित किए गए हैं, उनका जमीन पर क्या हाल है, ये पता लगाना होगा। उम्मीद है कि जब ये मंत्री अपनी रिपोर्ट पीएमओ या केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सौपेंगे तो उसके बाद कुछ कमियों को दूर किया जा सकता है।

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