झांसी: बेहद अमानवीय हालातों में संघर्षरत हैं किसान

झांसी। उत्तर प्रदेश के झांसी में अपनी विभिन्न मांगो को लेकर पिछले 41 दिनों से गांधी पार्क में संघर्ष कर रहे किसानों और विशेषकर महिलाओ को बेहद कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है दूसरी ओर प्रशासन और जनप्रतिनिधि पूरे मामले पर मूक दर्शक बने हुए हैं।

यहां गांधी पार्क में किसान रक्षा पार्टी के बैनर तले विभिन्न गांवों के किसान सिंचाई विभाग से जुड़ी अपनी अपनी समस्याओं के समाधान के लिए धरने पर बैठे हैं। घर बार छोड़कर एक छोटे से पार्क में यूं महिलाओं और पुरूषों का आ बैठना अपने आप में सवाल खड़े करता है। धरने पर बैठी महिला किसानों रजिया (निवासी इमलिया गांव), रामकुमारी (धवारी गांव ), भगवती (चढरऊ धवारी गांव ), मनकू (धवारी) , चट्टी (इमलिया), पुखन्न , मुन्नी ने प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से मंगलवार को सवाल किया कि ऐसे समय मे जब कोई व्यक्ति एक दिन के लिए भी अपना घर छोड़कर कहीं जाने से परहेज करता है, हम लोग अपने बच्चे और परिवार के वृद्धजनों को छोड़कर यहां खुले पार्क में 41 दिनों से बैठे हैं क्या यह अपने आप में यह बताने के लिए काफी नहीं है कि हमारी समस्या कितनी बड़ी है और कितना मजबूर होकर हमने यूं खुले आसमान के नीचे धरने पर बैठने का फैसला किया होगा।

हमारी परेशानी का सबब जो सिंचाई विभाग है न तो उस इस विभाग का कोई अधिकारी , न ही कोई जनप्रतिनिधि हमारी समस्या के समाधान के लिए लगकर प्रयास कर रहा है। अभी तक जो आयें भी हैं उनके प्रयास अगर सफल होते तो हम भी अपने घर जा चुके होते। हम आज भी यहां बैठे हैं तो यह बताता है कि 41 दिन गुजरने के बाद भी हम वहीं खड़े हैं जहां पहले दिन खड़े थे।

इस पार्क में न पीने के लिए साफ पानी है न खाने की व्यवस्था है, न लाइट है और तो और शौच तक की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में हम महिलाओं को सुबह शौच के लिए, नहाने धोने के लिए किस दर्जे की परेशानी का सामना करना पड़ता होगा इसका अंदाजा तक कोई नहीं लगा सकता। हम सबने मिलकर अपने सिर पर यह टैंट ताना है जहां इतनी उमसभरी गर्मी में हम बैठते हैं। खाना हमारे घरों से बनकर आता है कुछ समाजसेवी हमारी मददकर रहे हैं जो गांव में हमारे घरों से बना खाना लेकर यहां आते हैं और साथ में पर्ची पर नाम भी लिखाकर लाते हैं। खाना लाने वाला व्यक्ति नाम ले लेकर सबको खाना देता है। इसी खाने को मिलबांटकर हम खा लेते हैं और जिनको नहीं मिल पाता वह भूखे ही सो जाते हैं।

ऐसे अमानवीय हालातों में भी हम यहां पड़े हैं तो बस केवल इसी उम्मीद पर कभी तो इन अधिकारियों को हमारी समस्याएं नजर आयेंगी। अभी जब हम 41 दिनों से यहां जमा है और सभी संबंधित विभागों के अधिकारियों , प्रशासन के सभी बड़े अधिकारियों ,जन प्रतिनिधियों को अपनी समस्याएं बता चुके हैं लेकिन कोई अधिकारी हमारी परेशानी दूर करना तो बड़ी बात हमारी बात सुनने तक धरना स्थल तक नहीं आया। हम अपनी समस्याएं लेकर अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों के घर तक पहुंचे लेकिन उन्हें भी हमारी बात सुनने या समाधान के लिए संबंधित विभागों के बात करने का समय नहीं है।

जबरदस्त समस्याओं के बीच हम यहां यूं सड़क पर पड़े हैं तो इसी उम्मीद पर कि कभी तो कोई हमारी तरफ देखेगा और हमारी ओर मदद का हाथ बढायेगा।

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