पत्रकारों की लड़ाई !

शीर्षक से भ्रमित होने की जरूरत नहीं। दुनिया के हर तबके की आवाज उठाने वाले पत्रकार बंधु अपने अधिकारों की रक्षा एवं उत्पीड़न के विरूद्ध एकजुट होकर लड़ाई नहीं लड़ सकते क्युकिं यह एकजुटता उन्हें टी.आर.पी बढ़ाने से रोकती हैं। अनेक राज्यों में पत्रकारों का उत्पीड़न हो रहा है। उनके साथ पुलिस गुंडों सरीखा व्यवहार करती है, सच्चाई उजागर करने वाले पत्रकारों के विरूद्ध देशभर में फर्जी प्राथमिकी लिखाई जाती हैं। पत्रकारों पर एक ओर राजनीतिक दुकानें चलाने वाले फर्जी नेताओं का दबाव रहता है तो दूसरी ओर छंटनी और वेतन में कटौती की तलवार उनके सिरों पर लटकी रहती है। फिर भी ये बेचारे एकजुट होकर व्यवस्था से नहीं लड़ सकते।

हमारा तात्पर्य उस घटना को इंगित करना है जिसमें रिपब्लिक भारत के पत्रकार प्रदीप भंडारी पर एनडीटीवी तथा एबीपी के पत्रकारों ने हमला कर दिया था। फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण से संबंधित समाचार लेने पहुंचे पत्रकारों में एनडीटीवी व एबीपी के पत्रकारों ने रिपब्लिक भारत के पत्रकार से मारपीट शुरू कर दी। इस हमले के दृश्य सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुछ चैनल देश की सरकार, सेना व नेतृत्व पर झूठी मनघडन्त खबरों व प्रायोजित इंटरव्यू के जरिये खुद को सच्चाई पोषक बताते हैं। कुछ चैनल तो आरोपितों का साक्षात्कार लेकर सत्यमेव जयते का नारा लगाते हैं।

इन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वालों ने पत्रकारिता की गरिमा को तार-तार करने का बीड़ा उठाया हुआ है। अब ये पत्रकार साथियों पर हमले भी करने लगे हैं। लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में गुंडागर्दी पर उतारू हो गए हैं। इनकी तुलना उन पेशेवर नाचनेवालियों से की जा सकती है जो भारी थैली फेंकने वालों के सामने ठुमके लगाती है। अफसोस है कि भारतीय प्रेस परिषद और भारत सरकार इस गंदगी को फलने-फूलने से रोक पाने में विवश है। जनता व दर्शकों को ऐसे चैनलों का बहिष्कार करना चाहिए जो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर तथ्यों को तोड़-मरोड कर पेश करते हैं।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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