केजरीवाल ने झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन से की मुलाकात

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने शुक्रवार को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की। इससे पहले केजरीवाल और मान गुरुवार को रांची पहुंच गए। केजरीवाल ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ अपनी पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) के लिए सीएम सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का समर्थन मांगा।

दो बजे सोरेन करेंगे मीडिया से बात
झारखंड सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एवं पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान दो जून 2023 को दोपहर में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात करेंगे। दोनों दोपहर दो बजे मुख्यमंत्री आवास पर संयुक्त रूप से मीडिया से बातचीत करेंगे।

स्टालिन ने समर्थन का भरोसा
इससे पहले केजरीवाल और मान ने चेन्नई में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से मुलाकात की थी। स्टालिन ने केंद्र पर गैर-भाजपा शासित राज्यों में संकट उत्पन्न करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि द्रमुक केंद्रीय अध्यादेश का कड़ा विरोध करेगी। स्टालिन ने कहा कि केंद्र आम आदमी पार्टी के लिए संकट उत्पन्न कर रहा है और विधिवत चुनी हुई सरकार को स्वतंत्र रूप से काम करने से रोक रहा है। आप सरकार के पक्ष में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बावजूद केंद्र अध्यादेश लाया। स्टालिन ने केजरीवाल को अपना अच्छा दोस्त बताया।

गैर-भाजपा दलों को साथ लाने की कोशिश
इसके बाद आप प्रमुख केजरीवाल अध्यादेश के खिलाफ समर्थन हासिल करने के लिए गैर-भाजपा दलों के नेताओं से संपर्क कर रहे हैं। उनका मकसद हैं कि संसद में विधेयक लाए जाने पर केंद्र उसे पारित नहीं करा सके।

क्या है मामला?
दरअसल, केंद्र ने आईएएस और दानिक्स कैडर के अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाने के लिए 19 मई को अध्यादेश जारी किया था। यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली में निर्वाचित सरकार को पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से संबंधित सेवाओं को छोड़कर अन्य सेवाओं का नियंत्रण सौंपने के बाद आया। अध्यादेश जारी किए जाने के छह महीने के भीतर केंद्र को इसकी जगह लेने के लिए संसद में एक विधेयक लाना होगा। शीर्ष अदालत के 11 मई के फैसले से पहले दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों के स्थानांतरण और पदस्थापना उपराज्यपाल के कार्यकारी नियंत्रण में थे।

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